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फैलाए पड़े जो दंगा ,

फैलाए पड़े जो दंगा ,

इसका क्या है हेतु ?
जिस सृष्टि में हो आए ,
मार्ग में कितने सेतु ?
सेतु ही ऐसा मार्ग है ,
सुरक्षित आना सबको ।
आकर ही मार्ग चुनना ,
कौन भाता है रब को ।।
किसके संग मंगल गुरु ,
किसके संग राहू केतु ।
फैलाए पड़े जो दंगा ,
इसका क्या है हेतु ।।
सेतु ही जगह सुरक्षित ,
नीचे बह रहे गंदे नाले ।
देखने में चकमख दिखा ,
कूद पड़े तुम ले प्याले ।।
आए तो हो इंसाॅं रूप में ,
क्यों दिखते तुम प्रेतु ।
फैलाए पड़े जो दंगा ,
इसका क्या है हेतु ?
आए हो किस देश में ,
कैसे आचार वेश में ।
गणना कर देख मन ,
शेष विशेष अवशेष में ।।
क्यूॅं समझ न आए तुझे ,
किस मिट्टी का बना रे तू ।
फैलाए पड़े जो दंगा ,
इसका क्या है हेतु ?


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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