बदल गया संसार
अपनापन अनमोल बदला, बदली जीवन धारा।मतलब के सब संगी साथी, स्वार्थ ने डेरा डारा।
चकाचौंध के कायल हुए, बदले मनुज विचार।
धन के पीछे दौड़ पड़े अब, लुप्त हुए संस्कार।
बदल गया संसार
बस स्वार्थ ने पांव पसारे, क्या रिश्ते क्या नाते।
कैसे उल्लू सीधा कर ले, दाव पेच सबको भाते।
दया प्रेम करुणा खोई, सजा नफरत का बाजार।
लूटमार सीनाजोरी छाई, काम क्रोध है तकरार।
बदल गया संसार
व्यंग्य बाण वाणी के बरसे, नयन उगलते अंगारे।
अधरों की मुस्कानें तरसे, हृदय बरसती रसधारें।
छल छदम दंभ घट में, दिखावे का उमड़ता प्यार।
चांदी के सिक्कों में बिकता, विश्वास प्रेम आचार।
बदल गया संसार
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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