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वसंत ऋतु

वसंत ऋतु

वसंत है ऋतुराज,

समुन्नत व भाल।

इससे सब हैं पीछे,

चाहे हों काल।

इस ऋतु में होता,

सौंदर्य का कमाल।

यह सर्वप्रिय होकर,

मचाता है धमाल।

यह ऋतु है निराली,

चारों ओर छायी हरियाली।

प्रकृति को शोभायमान कर,

सर्वत्र फैली खुशियाली।

अलसी, आम और सरसों के फूलों का

कोई नहीं है सानी।

यह लोगों को करती मस्त,

और बनाती दीवानी।

कोयल गाती सुन्दर गान,

वह बनाती अपनी पहचान।

इनकी सुरीली धुन,

सबके लिए है वरदान।

जय मां शारदे का हमसब,

करते हैं जयगान।

यह सभी का

करती है कल्याण।

दुर्गेश मोहन

बिहटा, पटना (बिहार)

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