बस यूँ ही
जब खो जाता हूँख्यालों और ख्वाबों में
बचपन से पचपन की
खेलकूद और बातों में
बस यूँ ही
याद आ जाती है
वह नदी
जो भरी रहती थी
शीतल जल से
और
और आज है संघर्ष रत
अपने वजूद को
बचाने के लिये।
हाँ
उसके निशान बाकी हैं
उन पत्थरों पर
जो लगाये गये थे
उसके किनारों पर
तटबंध के रूप में।
अ कीर्तिवर्धन
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