एक राष्ट्रभाषा' के आंदोलन को बल दे रहा है साहित्य सम्मेलन : पूर्व राज्यपाल

- सम्मेलन के ४३वें महाधिवेशन की सफलता के उपलक्ष्य में नृत्य-गीत-संगीत के साथ मनाया गया आनंदोत्सव, सम्मनित हुए साहित्यकार, जयन्ती पर स्मरण किए गए डा रवींद्र राजहंस, हुआ भव्य कवि-सम्मेलन
हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा बनाए जाने के आंदोलन को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से प्रचूर बल मिल रहा है। सम्मेलन द्वारा विगत वर्षों में आयोजित हुए महाधिवेशनों के माध्यम से इस आंदोलन का आरंभ हुआ और अब यह राष्ट्रीय-स्तर पर गंभीर चिंतन का विषय बन चुका है। इससे आशा बँधती है कि हिन्दी शीघ्र ही भारत की राष्ट्रभाषा घोषित होगी।
यह बातें सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने साहित्य सम्मेलन में आयोजित 'आनंदोत्सव-२०२५' का उद्घाटन करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि साहित्य सम्मेलन ने अपनी स्थापना के काल से ही भारतवर्ष में हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में ऐतिहासिक महत्त्व के कार्य किए हैं। उनके पिता भी साहित्य सम्मेलन के आजीवन-सदस्य थे।


समारोह के मुख्यअतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि जिस प्रकार एक परिवार की सुरक्षा और उसके विकास के लिए एक भाषा आवश्यक है, उसी प्रकार किसी राष्ट्र की सुरक्षा और विकास के लिए एक भाषा अनिवार्य है। एक भाषा ही सबको एक सूत्र में जोड़ती है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि विगत एक दशक में आयोजित हुए सम्मेलन के महाधिवेशनों से संपूर्ण भारतवर्ष में एक बार फिर से हिन्दी के प्रति नयी चेतना के साथ नूतन उत्साह उत्पन्न हुआ है। सम्मेलन आरंभ से ही इस बात पर बल देता रहा है कि राष्ट्र के प्रति संवेदनशील किसी भी राष्ट्र की भाँति भारतवर्ष की भी एक राष्ट्रभाषा अवश्य ही होनी चाहिए। देश की एकता और अखंडता के लिए यह नितान्त आवश्यक है। एकत्व के लिए 'संवाद' आवश्यक है और संवाद भाषा के माध्यम से ही संभव है। देश की एक राष्ट्रभाषा होते ही पूरा देश भावनात्मक-स्तर पर एक हो जाएगा।
उन्होंने जयंती पर पद्मश्री अलंकरण से विभूषित हास्य-व्यंग्य के सुप्रसिद्ध कवि डा रवींद्र राजहंस तथा विदुषी आचार्या कृष्णा सिंह को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया, जिनकी स्मृति में सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।
आनंदोत्सव के स्वागताध्यक्ष डा कुमार अरुणोदय ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह उत्सव उनके सम्मान के लिए आयोजित किया गया है, जिन्होंने सम्मेलन के विगत अधिवेशन को राष्ट्रव्यापी बनाने में अपना पूरा मन-प्राण लगाया। सम्मेलन प्रायः ही देश भर के विद्वानों और विदुषियों का सम्मान करता है, किंतु अपनी ही कार्यसमिति और स्वागत समिति की सेवाओं का सम्मान नहीं कर पाता था। इसीलिए उनके सम्मान का अवसर बनाने हेतु यह उत्सव आयोजित किया गया है।
इस अवसर पर डा पुष्पा जमुआर की दो पुस्तकों 'मगही पुष्प मधु' तथा 'शब्द मुखर हो उठे' का लोकार्पण भी किया गया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा कल्याणी कुसुम सिंह ने किया।
दोपहर के सह-भोज के पश्चात सम्मेलन के कला-विभाग और सांस्कृतिक-संस्था 'प्रांगण कला केंद्र' की ओर से सोमा चक्रवर्ती के निर्देशन में एक रंगारंग सांस्कृतिक-कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में एक भव्य कवि-सम्मेलन भी संपन्न हुआ, जिसमें सम्मानित हुए कवियों और कवयित्रियों के अतिरिक्त वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, डा जंग बाहादुर पाण्डेय, शशिभूषण सिंह, आरपी घायल, प्रो सुधा सिन्हा, सिद्धेश्वर, अभिलाषा कुमारी, डा अलका वर्मा, डा रमाकान्त पाण्डेय, मृत्युंजय गोविंद, संध्या साक्षी, नूतन सिन्हा, सुनील कुमार, सफ़नकार शरण आर्य, सुनीता रंजन, राज प्रिया रानी, चंद्रिका ठाकुर, विनोद कुमार झा, नरेंद्र कुमार आदि ने भी अपनी रचनाओं का सुमधुर पाठ किया।
सांस्कृतिक-कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले कलाकारों में, काजल कुमारी, कृति कुमारी, अन्नू कुमारी, मीरा कुमारी, श्रुति कुमारी, मीनाक्षी मधुश्री,निशा कुमारी तथा अतीश कुमार को दर्शकों की प्रचूर सराहना प्राप्त हुई।
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