मैं दादा तू पोता ,
मेरे अश्रु तू धोता ।होता दिल विह्वल मेरा ,
जब तू पोता रोता ।।
दिल रूपी चबुतरा है तू ,
मेरे दिल का टुकड़ा है तू ।
मुख तो है यह मेरा ही ,
किंतु मुख के मुखड़ा है तू ।।
एक ही तो तेरा मेरा खोंता ,
गोद लिए तुझे मैं ढोता ।
आनंदित होता तब हूॅं मैं ,
जब तू मेरे सीने पे सोता ।।
अपना हर कुछ तुझपे हारा ,
राम ने भेजा बनाकर सहारा ।
तुझे देख मैं पी जाऊॅं गम भी ,
प्रभु ने भेजा मेरे हेतु प्यारा ।।
मैं लगाऊॅं तेरे प्यार में गोता ,
तू मुझको है प्यार में डूबोता ।
आनंदित तब होता बहुत मैं ,
जब आनंद रूपी बीज हूॅं बोता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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