सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर
यत्र तत्र सर्वत्र बढ़ती जा रहीं,नारी दुष्कर्म उत्पीड़न घटनाएं ।
पाश्विक हुआ सामाजिक परिवेश,
सोच अंतर वसित वासनाएं ।
शासन प्रशासन मौन धारण,
पर प्रतिशोध हित हुंकार भर।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।
अनुभूत निज शक्ति सामर्थ्य,
उर स्वाभिमानी ज्योत जला ।
अभय पथ पर गमन कर,
दिखा अबला जलजला ।
जो डाले तन पर कुदृष्टि,
उनके विरुद्ध ललकार धर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।
ज्ञान विज्ञान शिक्षा खेलकूद,
हर क्षेत्र अग्र कदम रख ।
अभिव्यक्त सही गलत स्पर्श ,
फिर भावी परिणाम परख ।
तज शर्म संकोच मर्यादाएं ,
खोज दानव प्रहार अवसर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।
उरस्थ संपूर्ण सृष्टि ओज ,
साहस शौर्य दिव्य सरिता ।
नैतिकता मुख मंडल स्वर,
परिवार समाज भव्य संहिता ।
सदा अभिवंदित नारीत्व प्रभा,
सहर्ष हर चुनौती स्वीकार पर ।
सीता बनकर देख लिया,अब दुर्गा सा श्रृंगार कर ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com