झूठा जो प्यार जताए
पांव की बेड़ियां बन जाए नैनो के तीर तन जाए।छोड़ दो उस शख्स को खींचातानी और बढ़ाएं।
राहों में शूल बिछाए जो बेवजह आंख दिखाएं।
कैसे वो साथी सफर में परचम को देखना पाए।
बातों बातों में टांग अड़ाए तिरछी नजर गड़ाए।
कैसे खुश करें उनको खुशियां जो सह ना पाए।
झूठा जो प्यार जताए रंग में जो भंग कर जाए।
कर दे खेल का कबाड़ा रिश्ता हम कैसे निभाएं।
मौके पर बाण चलाए धीरज जो धर ना पाए।
महफिल मुस्कानों की है कोई कैसे समझाएं।
मौसम की भांति बदले बदलती दुनिया सारी।
बदलावों का दौर आया हवाओं की है खुमारी।
आसमां तुम्हारा होगा जुनून सर पे चढ़ा हो।
हौसला मन में भर लो लक्ष्य बहुत बड़ा हो।
जो जलाए पांव को तोड़े प्रीत की पावन डोर।
राहें बदल लेते हैं लोग रह जाता है पीछे शोर।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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