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फागुन के रंग

फागुन के रंग

चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
जिया धड़के बहुत, मन हुआ उलार सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
चले ठंढी पवन, है अलसाया तन मन,
मांगे फिर फिर सजनवा के दुलार सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग हज़ार सखि रे
बरसे सतरंगी रंग, मन हो रहा मलंग
खिल खिल आये सुमन, हज़ार सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
चली पिचकारी की धार, भीजि रतनारी नार
रंगी रंग गुलाल, दिया बरजोरी डाल सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
टोली निकली गली, बाजे ताशा ढोल ढपली
फगुआ गाते सभी, बोलें स र र रा सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
लीन्हा बाहों में कस, हुई मैं तो बेबस
जैसे लिपटी तरु बेल, छूटे को चाहे न मन सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
मोरा बांका सजन, उसकी भाए छुवन
चली उसके मैं संग, जैसे कटी पतंग सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
है अजब ही आनंद, हुआ भंग का भी संग
लहराए मन में आतुर, बसंत सखी रे
चढ़ गए फ़ागुम के रंग, हज़ार सखि रे
आया होली का त्योहार, त्योहार सखी रे
हुई रंग की बौछार, मन मे उठता खुमार खुमार सखी रे
चढ़ गए फागुन के रंग हज़ार सखी रे

- मनोज कुमार मिश्र


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