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अकड़ पर पकड़

अकड़ पर पकड़

सुरेन्द्र कुमार रंजन

नारी एक मगरूर थी,
अभिमान में चूर थी।
धन का उसे घमंड था,
कंजूसी उसका फंड था।


पैसा बहुत कमाती थी,
खर्च करने से कतराती थी।
दूसरों का धन उड़ाती थी,
अपना धन को बचाती थी।


सरकारी नौकरी करती थी,
पति को नौकर समझती थी।
खुद सज - धज कर रहती थी,
पति को फुहड़पन में रखती थी।


खुद पर पैसे लुटाती थी,
पर पति को वो तरसाती थी।
पैसों की लालच की खातिर,
पति की जान दांव पर लगाई


विधवा होने के बाद भी,
पैसों का मोह न कम हुआ।
इतना गहरा जख्म पाकर भी,
ना पैसों का हवस कम हुआ।


पति गया पर धन तो आया,
उन पैसों से जेवरात बनवाया।
गम का झूठा दिखावा करके,
काम करने से जी को चुराया ।


अभिमान है धन का इतना,
नहीं बना कोई उसका अपना।
अकड़ बनी है जान की दुश्मन ,
पैसों से नहीं बचेगा जीवन।
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