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कविता- कल्पनाओं का गुलदस्ता

कविता- कल्पनाओं का गुलदस्ता

कविता कल्पनाओं का वह गुलदस्ता है, जो लय ताल और शब्दों के संयोजन से सभा को महका देता है। कवि हृदय के उद्गार लेखनी से होकर शब्द शिल्पी कागज पर उकेर देता है।

जब हृदय में उथल-पुथल होती है मन की पीर द्रवित होती है तो भावों की गंगा कविता बनकर कलम की नोक से काव्य की विधाओं दोहा, मुक्तक, गीत, गजल, छंद सोरठा रूबाई का रूप लेती है। कवि अधरों से होकर यह जनमानस में छा जाती है। कभी यह प्रेम के तराने गाती है, कभी वीरों का यशगान सुनाती है।

सिंहासन को सदैव चेतना और जागृति दिलाने वाली कविता ही है। कविता कभी ओज में हुंकार भरती है तो कभी करुण रस में सामाजिक पीड़ाओं को व्यक्त करती है। आदिकाल से काव्य के नौ रसों का वर्णन आता है। आजकल मंचों पर हास्य रस खूब फल फूल रहा है देश के धनाढ्य गणों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हास्य कवियों का जमावड़ा रहता है जो मात्र मनोरंजन के लिए किया जाता है। देश की समस्याओं व समाज हितों से इनका कोई लेना-देना नहीं रहता।

मंच के कवियों में गुटबाजी भी अपना अहम स्थान रखती है, मौलिक रचनाकारों को दरकिनार कर कई नामिक कवि तो औरों की रचनाएं सुनाकर वाह वाही लूटते हैं। वहीं कई कई ऐसे भी है जो एक ही कविता के दम पर सारी जिंदगी गुजार देते हैं।
साहित्य के क्षेत्र में कविता स्तरीय और मौलिक होनी चाहिए। काव्य महारथियों को सम्मान मिलना चाहिए पर उसी को जिसने सच्ची साधना की है, शब्दों को पिरोया है, सांचे में ढाला है, जो मां शारदे की आराधना करता है, कलम का पुजारी है, जो राष्ट्र और समाज हित में लिखना है। विद्वानों के मध्य यह मेरे निजी विचार है, अभिव्यक्ति है।

उजियारा चहुंओर हो जाए, दीप कहीं जलना चाहिए।
अंधकार का दमन आज हो, सूरज निकलना चाहिए।


रमाकांत सोनी सुदर्शन


नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

स्वरचित आलेख
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