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एक दिवस महिलाओं का, तब तो इतना भारी है,

एक दिवस महिलाओं का, तब तो इतना भारी है,

सम्पूर्ण वर्ष उनके हमलों से, बचने की तैयारी है।
होते अगर दो चार दिवस, सोचो तब कैसे कटते,
तभी बुजुर्गों ने बोला है, नर पर नारी सदा भारी है।


एक अकेली पत्नी लाने, दुल्हे स़ंग सौ बाराती जाते,
आ जाती घर बनकर शेरनी, शिकार की तैयारी है।
अब आगे की बात सुनो, बारात लिए खुद आ जाती,
घर में घुसकर विवाह करे, फिर कैसे वह बेचारी है?


यूँ तो नारी सदा सदा से, पूजित ही रहती आयी,
धर्म कर्म की संरक्षक, संस्कृति की नींव जमायी।
माँ की ममता स्नेह बहन का, पत्नी की प्रीत बनी,
बेटी का दुलार है नारी, धरा गगन तक पैठ बनायी।


नही मुश्किलों से घबराती, अम्बर में भी पैर जमाती,
संस्कार संस्कृति पोषक, बच्चों में विश्वास जगाती।
शिक्षा सेवा विज्ञान क्षेत्र, सेना पुलिस या राजनीति,
अंतरिक्ष के रहस्य खोले, चुनौतियाँ से नही घबराती।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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