भारत की स्वतंत्रता एक आकलन
आज भारतवर्ष का प्रत्येक नागरिक बड़े ही गुमान से कहता है कि भारतवर्ष एक सार्वभौमिक रुप से स्वतंत्र देश है और हम सब इस स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। दोस्तों, यह एक अटल सत्य है। इसी स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए लाखों लोगों ने अपने जीवन की कुर्बानी दी है , तब जाकर हमें यह स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के समय और देश के विभाजन के साथ ही हमारे उस समय के माननीय गणमान्य नेताओं के द्वारा कुछ ऐसी गलतियां हो गई कि भारत एक स्वतंत्र देश तो बन गया, लेकिन स्वतंत्रता स्वस्थ नहीं बन सकी और शूरु से ही कैंसरग्रस्त हो गई।
आज उसी का परिणाम है कि भारतवर्ष को हर रोज देश के किसी न किसी कोने में सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। एक स्वतंत्र देश के किसी भी धर्म के नागरिक को आज संगीन के साये में सुरक्षाबलों के घेरे में रह कर अपना पर्व मनाना पड़ रहा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि कोई नागरिक खुले तौर पर अपना पर्व भी नहीं मना सकता है और हमारे नेताओं द्वारा यह फख्र से कहा जाता है कि अमुक पर्व शांतिपूर्ण तरीके से समपन्न हो गया। हाल ही में घटित देश के उतरप्रदेश के संभल में होली का इस तरह मनाया जाना एक ताजा घटना और उदाहरण है। पुनः दो दिन बाद ही देश के महाराष्ट्र प्रदेश के नागपुर में आज दो दिनों से साम्प्रदायिक दंगे और उन्माद में वहाँ के लोग झूलस रहे हैं। वहाँ आगजनी और हमले की घटनाएं जो कि मुस्लिम समाज के एक वर्ग द्वारा हिन्दूओं के घरों पर की गई हैं, वो सर्वथा निंदनीय है। ये सब ताजा उदाहरण हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं का सिलसिला शायद कभी खत्म नहीं होता है और चलता ही रहता है। भले ही इसे संबंधित राज्य प्रशासन अथवा केन्द्रीय प्रशासन कड़ाई कर के दबा दे, परंतु मनुष्य होते हुए भी दोनों सम्प्रदायों के नागरिकों का दिल अंदर से कभी भी नहीं मिल पाता है और, यह कैंसरग्रस्त बिमारी ऐसे ही चलता रहेगा, ऐसा लगता है।
एक बहुत बड़े कैंसर के डाक्टर ने कहा था कि एक बार किसी के शरीर में कैंसर रोग लग जाने पर वह कुछ समय के लिए दब जाता है पर वह जल्दी ठीक नहीं हो पाता है। समय पर इलाज के क्रम में रेडियोथेरेपी, केमोथेरेपी अथवा सर्जरी के दौरान कैंसर के जीवाणु उस मरीज के शरीर में दवाई के असर से बेहोश हो जाते हैं और शरीर के किसी कोने में बेहोशी की हालत में पड़े रहते हैं। ऐसा आभास होता है कि रोगी ठीक हो गया है। परंतु यह बिलकुल सही नहीं है। हो सकता है कि कैंसर के उन बेहोश जीवाणुओं की बेहोशी काफी समय तक जारी रहे, अथवा ऐसा भी हो सकता है कि हमारे शरीर में बाहर से मिलने वाले खान पान के सम्पर्क में आकर उनकी बेहोशी जल्द खत्म हो जाय और वे पुनः सक्रिय होकर शरीर को अस्वस्थ बना दें और ऐसा भी हो सकता है कि इस बार के आक्रमण में रोगी की मौत ही हो जाये।
ठीक वैसी ही स्थिति अपने देश की इस कैंसरग्रस्त स्वतंत्रता की हो गई है। देश के कुछ प्रबुद्ध नेताओं और सुरक्षाबलों रूपी डाक्टरों के समय पर सही निर्णय और सही इलाज के चलते यह भयानक साम्प्रदायिक कैंसर रोग कुछ समय के लिए दब जा रहा है और राजनीतिक लाभ के लिए खानपान के रूप में कुछ विरोधी नेताओं के सम्पर्क में आकर यह बेहोशी में पड़ा हुआ कैंसर जिवाणु रुपी साम्प्रदायिक ताकतें पुनः देश के किसी न किसी कोने में सक्रिय हो उठता है। यह स्थिति देश के लिए और देश के सामान्य नागरिकों के लिए अत्यंत ही सोचनिय है। अगर ऐसी ही स्थिति कायम रहती है, तो क्या देश शांति से चल पाएगा और सुरक्षित रह पाएगा। यह सोचना आज के तारीख में देश के सभी धर्मों के नागरिकों का दायित्व बनता है, क्योंकि देश को स्वतंत्र हुए और खंडित हुए अब लगभग ७८ साल हो गये हैं।
अगर हम सब धर्म की बात करें, तो ईश्वर ने हम सभी लोगों को इस धरती पर केवल और केवल मनुष्य अथवा इंसान बना कर ही भेजा था। हम मनुष्य कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान बन गए और अपने को अलग अलग धर्मों में बांट लिया और एक दूसरे को उंचा नींचा दिखाने लगे। किसी धर्म को छोटा तो किसी धर्म को बड़ा मानने लगे। ठीक वैसी ही स्थिति राजनीति के क्षेत्र में आई। अपने को सभी धर्मों के लोगों ने मील बांट कर तरह तरह के राजनीतिक दल बना लिए है और एक दूसरे को उंचा नींचा दिखाने में लगे हुए हैं और केवल सत्ता के लिए धर्म और जाति में तोड़ फोड़ कर देश की स्वतंत्रता को खतरे में डालने की कोशिश कर रहे हैं।
गलत राजनीति करके और सत्ता में आने अथवा बने रहने के लिए अगर कोई भी व्यक्ति अथवा राजनीतिक दल इस देश में साम्प्रदायिक ताकतों को उभार रहा है तथा हवा दे रहा है, तो इस देश की पहले से ही कैंसरग्रस्त स्वतंत्रता के साथ घोर अन्याय कर रहा है और देश को भविष्य में एक और साम्प्रदायिक विभाजन की ओर ढकेल रहा है। अतः आवश्यकता है आज पुनर्विचार करने की कि कैसे हम सब मिलजुल कर इस देश की स्वतंत्रता को स्वस्थ बनाए रखें जिसे एक बार लाखों लोगों की कुर्बानियों के बाद हासिल किया गया है।
जय प्रकाश कुंवर
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