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नवजीवन

नवजीवन

मधु और मधुसूदन के शादीशुदा जीवन की आज पहली होली है। आज चारों तरफ रंग और गुलाल की बारिश हो रही है। पूरे मुहल्ले के युवक और युवतियाँ अलग अलग टोली बनाकर और बाल्टी में रंग घोल कर एक दूसरे पर उड़ेल रहे हैं। छोटे छोटे बच्चे तो धूल कीचड़ खेलने में मस्त हैं। उधर मुहल्ले के बुजुर्ग लोग युवाओं को अबीर का टिका उनके माथे पर लगाने और उनसे अपने पैरों में अबीर डलवाने में खुशी महसूस कर रहे हैं। घर की बुजुर्ग औरतें मीठा पकवान बनाने में लगी हुई हैं। अपनी सासू माँ के साथ मधु भी पकवान बनाने में मदद कर रही है और बीच बीच में मुहल्ले से आयी हुई युवतियों के साथ रंग खेल ले रही है। रंगों के इस त्योहार में नयी नयी शादी और ससुराल में खुब आनंद आ रहा है।
इधर मधुसूदन के साथ रंग खेलने मुहल्ले के युवा लड़के आए हुए हैं और देखते हैं कि वह गुमशुम किन्हीं विचारों में खोये हुए सोफे पर अधलेटे हुए पड़ा है। वास्तव में मधुसूदन अपने अतीत के उसके जीवन से जुड़ी हुई एक घटना के याद में खोया हुआ था, जब उसके साथी युवक उसके घर पर होली खेलने पहुँचते हैं।
घटनाक्रम कुछ ऐसा था कि मधुसूदन को बचपन से ही साहसिक खेलों में काफी रूचि था और नौकरी ज्वाइन करने तथा शादी ठीक हो जाने के बाद एक बार वह अपने मित्रों के साथ हिमालय पर्वत की चढ़ाई के लिए निकल पड़ा था। मधुसूदन के पिता एक धार्मिक विचार के व्यक्ति थे और उन्होंने उसकी शादी पड़ोस के गाँव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में मधु नाम की लड़की से तय कर रखी थी। मधु देखने में काफी सुंदर और सुशील स्वभाव की लड़की थी। ग्रामीण रिवाजों से हटकर मधुसूदन ने मधु को दोनों परिवारों की मर्जी अनुसार आमने सामने देख रखा था, और वह उसे खुब पसंद आ गयी थी। और वह मन ही मन मधु से प्यार करने लगा था। वह मधु के साथ जल्द से जल्द शादी कर लेना चाहता था। लेकिन दोनों परिवारों के मर्जी अनुसार शादी में कुछ महीनों की देरी थी , इसलिए अपने आफिस से छुट्टी लेकर कुछ अन्य मित्रों के साथ मधुसूदन हिमालय पर्वत की चढ़ाई के लिए निकल पड़ा था। चढ़ाई के क्रम में उसका कैम्प काफी उंचाई पर लगा हुआ था, इस बीच बर्फीली आंधी चलनी शूरू हो गई। आंधी की रफ़्तार इतना तेज था कि उसका कैम्प तहस नहस हो गया और वे लोग बर्फ में दब गए। आंधी तूफान के कुछ कमजोर होने पर लोकल प्रशासन और आर्मी के जवानों द्वारा उनकी खोज बीन शुरू हुई। उनमें से कुछ लोग जीवित मिले और कुछ लोगों के मृत शरीर बर्फ के अंदर से निकाले गए। लेकिन काफी खोज बीन के बावजूद मधुसूदन का शरीर जिंदा अथवा मृत नहीं पाया जा सका। ऐसा मान लिया गया कि मधुसूदन अब इस दुनिया में नहीं है।
इस दुर्घटना का खबर जब मधुसूदन के धर और उसके होने वाले ससुराल में पहुँचा तो दोनों परिवारों के गम का ठिकाना नहीं था। सबकी हालत रोते रोते खराब हो गई थी। सबसे ज्यादा असर तो मधुसूदन के माता पिता के उपर पड़ा, क्योंकि वह उनका एकलौता संतान था। फिर और भी बुरा असर मधु के उपर पड़ा, जिसने शादी के बाद कितने अरमान अपने दिल में संजोए थे। और उसके सारे अरमान एक ही झटके में टूट गये। खैर होनी को कोई कैसे टाल सकता है। अब मधु काफी उदास रहने लगी थी। मधुसूदन के आफिस के तरफ से भी उसके माता पिता को काफी सांत्वना और आर्थिक मदद दी गई। समय व्यतीत होता गया। मधु के दूसरे जगह शादी के लिए उसके माता पिता ने बर ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन मधु ने साफ इन्कार करते हुए अपने माता पिता से कह दिया कि अभी हमें इस हादसे से उबरने में समय लगेगा, फिर शादी के बारे में सोचूंगी। इस प्रकार जीवन गुजरने लगा।
एक दिन हठात् मधुसूदन जीर्ण शीर्ण हालत में अपने घर पहुंचा। उसे देखकर उसके माता पिता और मुहल्ले वालों को विस्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही मधुसूदन है या फिर कोई और है। उसने अपनी सारी कहानी बताई कि कैसे बर्फीली आंधी तूफान में वह बर्फ के साथ फिसल कर काफी दूर नीचे छिटक गया था और बेहोशी की हालत में क‌ई दिनों तक एक पेड़ से अटका पड़ा रहा। जब उसे थोड़ा होश आया तो अपने को एकदम अकेला पाया। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कहाँ और कैसे आगे बढ़ू। इस बीच एक एक भूटिया आदमी मुझे बर्फ पर दिखा जिसने मुझे मदद कर पहाड़ से नीचे उतारा। मैं ईश्वर को लाख बार धन्यवाद दे रहा था और मुझे यही याद आ रहा था कि " जाको राखे साईंया, मार सके ना कोई ""। अब मुझे यह विश्वास होने लगा था कि मैं जिंदा रह पाउंगा। पर अब भुख सताने लगी थी।वह भूटिया एक फौजी ही था जो मुझे नीचे आर्मी कैंप में ले गया और वहाँ मैंने अपनी पूरी कहानी बतायी। फिर उन लोगों ने मुझे खाना और जरूरी दवा आदि दिया और मुझे मेरे घर भिजवाने की व्यवस्था की। घर लौटते समय मुझे बार बार मधु का ख्याल आ रहा था कि सभी लोगों की तरह उसने भी तो मुझे मृत ही मान लिया होगा। खैर जो भी हो ईश्वर ने मुझे जब एक बार पुनः नवजीवन दिया है तो इसे जैसे भी हो काटना ही पड़ेगा। इन्हीं सब तरह तरह के ख्यालों में वह अपने घर पहुँचा। नवजीवन पाकर और अपने घर लौट कर भी मधुसूदन हमेशा उदास रहने लगा और देख न देख वह अपने अतीत के ख्यालों में चला जाता था और गुमसुम हो जाता था।
मधुसूदन के जिन्दा घर आने की खबर चारों तरफ फैल चुकी थी। मधु और उसके परिवार वालोँ को भी यह मालूम पड़ चुका था कि मधुसूदन जिन्दा है और अपने घर आ गया है। मधु के तो खुशियों का ठिकाना ही न रहा। अब पुनः दोनों परिवारों की सहमति से शादी की तैयारियां होने लगी और निश्चित समय पर मधु और मधुसूदन की शादी बड़े धुमधाम से संपन्न हुई। मधु अब अपने ससुराल में मधुसूदन के साथ रह रही थी।
आज होली के त्योहार के दिन भी मधुसूदन अपने उन्हीं अतीत के ख्यालों में डूबा हुआ गुमशुम अपने घर में सोफे पर अधलेटा हुआ पड़ा था, जब मुहल्ले के युवा लड़को ने आकर उसे छेड़ा तब वह अपने अतीत के ख्यालों से बाहर निकला और ईश्वर द्वारा दिए गए अपने नवजीवन का भरपूर आनंद लेने लगा। उसने सभी के साथ खुब रंग अबीर की होली खेली। उसने अपने शादीशुदा नवजीवन के पहले होली का आनंद अपनी पत्नी मधु के साथ भरपूर उठाया। जय प्रकाश कुंवर


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