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फागुन संग- होली के रंग

फागुन संग- होली के रंग

होली को त्यौहार मनाने का हर प्रदेश-शहर और गाँव का अपना तरीका है। आज अपने शहर की होली याद कर रहा हूँ।
मध्यप्रदेश के बीना शहर में होली का त्यौहार मनाने का अपना ही तरीका है। यहाँ पर वैसे तो पांचों दिन होली खेली जाती है,परंतु रंग पंचमी के दिन की होली खेलने का अलग अंदाज होता है। सुबह से होली खेलना शुरू होता है। पुरुष,महिलाएं और लड़कियाँ लड़के सभी अपनी-अपनी टोली बनाकर बैंड-बाजों और ढोलक-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते २ बजे तक रंग की होली खेलते हैं। फिर सारे हौयारे एक साथ मिलकर मूर्ख सम्मलेन का आयोजन करते हैं,और मूर्ख लोगों की झांकी को पूरे शहर में घुमा कर सम्मेलन होता है। इसमें एक से बढ़कर एक मूर्ख अपनी अपनी कविता-गीत-शायरी सभी को सुनाते हैं,और अपने-आपको सबसे बड़ा मूर्ख बताने की होड़ करते हैं। नगर के लोगों को उनके कार्य के अनुसार उपाधि-पद-शीर्षक देते हैं। सभी जाति-धर्म और मजहब के लोग बिना किसी बुराई के ये त्यौहार बड़े प्रेम-भाव के साथ मनाते हैं। इस शहर की एक और विशेषता है कि,यहाँ पर हिन्दू,मुस्लिम,इसाई सभी लोग ये त्यौहार बड़े ही आनंद के साथ मनाते हैं,जो बहुत बड़ी मिसाल है। इस दिन पूरे शहर में सिर्फ एक ही काम चलता है और वो है ‘बुरा न मानो होली है।’ वैसे तो बीना नगर अपने-आपमें काफी लोकप्रिय है,पर यहाँ का मूर्ख सम्मेलन,नवरात्रि में मारुति मंदिर का अखिल भारतीय कवि सम्मलेन,बाल मेला,कहकहों की रात आदि काफी प्रसिद्द है,साथ ही बीना का गणेश उत्सव भी काफी प्रसिद्द है। अमन और शांति के साथ यहाँ पर सभी समुदाय के लोग बढ़-चढ़ कर हर त्यौहार में भाग्य लेते हैं। आज भले ही बीना की होली में शामिल नहीं हो पा रहा हूँ,परन्तु मैं सब यादों को होली के साथ महसूस कर रहा हूँ। भले ही मैं अपने शहर से दूर हूँ,पर उसकी यादें आज भी मेरे साथ हैं-
कभी हम वहां हुआ करते थे,
होली खेलते हुए अपनों के संग।
कितना स्नेह प्यार झलकता था,
एक-दूसरे के प्रति हम सभी का।
अब सिर्फ यादें बनकर हृदय में जिंदा है,
इस ऊँची-ऊँची और बिन बोलती इमारतों के शहर में।
जहाँ न कोई अपना है और न ही अपनेपन का,
दिल में स्नेह-प्यार और आत्मीयता है।
बस सुबह से शाम तक और रात से लेकर सुबह तक,
सिर्फ काम ही काम है।
बस बड़े शहरों में यही सब अब रह गया है,
इंसान एक पैसे कमाने की मशीन बन गया है॥
तीज त्यौहार सब भूल गया है।
अब तो यादों में वो जी रहा है।।


जय जिनेंद्र


संजय जैन "बीना" मुंबई


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