कश्मीर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक
डॉ राकेश कुमार आर्य
भारत विश्व की आर्थिक शक्ति बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। ऐसे में भारत के तेजी से बढ़ते कदमों को देखकर कई देशों को जलन होना स्वाभाविक है। अतः भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने से रोकने के लिए स्वाभाविक है कि भविष्य में भारत को कुछ नई समस्याओं का सामना करना पड़े। जिसकी ओर सजग रहते हुए वर्तमान नेतृत्व को आगे बढ़ना होगा। वर्तमान में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में कई ऐसी महाशक्तियां हैं, जो सैन्य क्षेत्र में भारत को एक निर्यातक देश के रूप में देखना किसी भी स्थिति में पसंद नहीं करेंगी। जबकि भारत इस क्षेत्र में सैन्य सामग्री निर्यातक देश की स्थिति प्राप्त कर एक महान उपलब्धि प्राप्त कर चुका है। इसी प्रकार कई अन्य क्षेत्र भी हैं, जिनमें हमें कई चीजों को विदेशों से मंगाना पड़ता था। जिन्हें अब भारत उल्टा निर्यात करने की स्थिति में आ गया है। वास्तव में किसी भी देश को अपने आप को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए जहां सैन्यशक्ति के रूप में स्थापित करना अनिवार्य होता है , वहीं आर्थिक शक्ति के साथ-साथ बौद्धिक क्षमताओं वाले देश के रूप में भी स्थापित करना अनिवार्य होता है। इन तीनों चीजों पर फोकस करके चलना ही उन्नति का निश्चायक प्रमाण माना जाना चाहिए।
हमारे देश के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का होना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वह एक सुलझे हुए स्टेट्समैन की भांति भारत की बात को बड़ी निर्भीकता के साथ विश्व मंचों पर रखते हैं। उन्हें किसी प्रकार के प्रचार की चाह नहीं है, जो कुछ कर रहे हैं, वे केवल देशभक्ति की भावना से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बहुत ही सावधानी बरतते हुए भारत को इन तीनों बातों पर स्थापित करने में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है कि भारत आर्थिक, सैनिक और बौद्धिक क्षमताओं वाला देश है। हमारा नेतृत्व जिस कश्मीर समस्या का कांग्रेसी शासनकाल में कोई तोड़ नहीं ढूंढ पा रहा था, उसका तोड़ हमारे वर्तमान विदेश मंत्री ने ढूंढ लिया है। अभी पिछले दिनों उनकी एक विदेश यात्रा के दौरान पाकिस्तान ने पैसा देकर उनसे एक प्रश्न एक पत्रकार के माध्यम से करवाया कि जम्मू कश्मीर को लेकर उनकी क्या योजना है ? हमारे विदेश मंत्री ने बिना विचलित हुए बड़े सहज भाव से उस पत्रकार को बता दिया कि धारा 370 को हटाना कश्मीर समस्या के समाधान की ओर उठाया गया पहला ठोस कदम था, उसके पश्चात कश्मीर की स्थितियां सामान्य कर वहां पर चुनाव संपन्न कराना दूसरा कदम था ....और तीसरे कदम की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि पीओके के भारत में आते ही यह समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी। बिना लाग लपेट के हमारे विदेश मंत्री ने पाकिस्तान सहित सारी विश्व बिरादरी को एक संदेश दे दिया कि भारत कश्मीर समस्या के लिए अपनी क्या योजना रखता है ?
याद है कांग्रेसी जमाने में यदि कोई पत्रकार ऐसा प्रश्न पूछता था तो क्या जवाब दिया जाता था ? तब कहा जाता था कि हम प्रत्येक समस्या को द्विपक्षीय आधार पर सुलझाएंगे.... बातचीत का रास्ता हमारे सामने है और संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था को भारत मानेगा। द्विपक्षीय आधार पर बातचीत के माध्यम से सुलझाने और संयुक्त राष्ट्र के निर्णय को भारत द्वारा मानने की बात अब अतीत का हिस्सा हो चुकी है या कहिए कि वर्तमान नेतृत्व की सुलझी हुई नीतियों के चलते अब हमारे विदेश मंत्रालय की कूटनीतिक भाषा में से ढुलमुलवादी नीति के परिचायक शब्द निकल चुके हैं। यह भारत के आत्म गौरव का पथ है। जिस पर विश्व समाज की दृष्टि है। इससे भी बड़ी बात यह है कि आत्म गौरव के पथ पर बढ़ते इस भारत को अब विश्व की शक्तियां इस बात के लिए घेरती हुई नजर नहीं आती कि तुम्हें पाकिस्तान से द्विपक्षीय आधार पर अपनी सारी समस्याओं को निपटाना पड़ेगा। ना ही कोई अब हमें यह उपदेश देता है कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर समस्या के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। जब कोई देश परमुखापेक्षी होता है, तब उसे कोई भी किसी भी बात पर दबा लेता है। परन्तु जब वही देश अपने पैरों पर मजबूती के साथ खड़ा हो जाता है तो सभी उससे समाधान पूछने लगते हैं। आज भारत स्वयं में एक समाधान है।
इस प्रकार के सकारात्मक परिवेश में प्रधानमंत्री मोदी भारत को 5000 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कह रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है और बीते 70 - 75 वर्ष की गलतियों को दुरुस्त करने का एक बड़ा अवसर भी है। जिसे प्रधानमंत्री मोदी बड़ी गंभीरता से अपने अनुकूल करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने इस महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए देश के युवाओं से रोजगार सृजन के लिए कौशल विकास और नवोन्मेष में निवेश का आह्वान भी किया है। हमारा मानना है कि कोई भी सरकार देश के सभी युवाओं को कभी भी सरकारी रोजगार नहीं दे सकती। हां, वह रोजगार के नए अवसर अवश्य पैदा कर सकती है। जहां तक भारत की बात है तो इस महान राष्ट्र ने इस वास्तविकता को बहुत पहले समझ लिया था। जब उसने वर्ण व्यवस्था को स्थापित किया था तो उसने अपनी इस व्यवस्था को रोजगार की एक गारंटी के रूप में लिया था। यही कारण था कि रोजी-रोटी की समस्या लोगों के सामने प्राचीन भारत में कभी नहीं रही। यहां स्वाभाविक रूप से नवयुवक अपने पिता से उसका रोजगार सीख समझ लेते थे । विद्यालय केवल संस्कारों के केंद्र थे। संस्कारों से सामाजिक व्यवस्था पवित्र बनी रहती थी। मुसलमान शासकों और उसके पश्चात ब्रिटिश शासकों ने भारत की सच्चाई को समझा नहीं । उन्होंने भारत को और भारत की नीतियों को उजाड़ना आरंभ किया। दुर्भाग्य से देश के स्वाधीन होने के पश्चात की सरकारों ने भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों को ही देश के कल्याण की एकमात्र गारंटी मान लिया। अब धीरे-धीरे उससे बाहर निकलने की स्थिति बन रही है। समझो कि भारत अपने मूल की ओर लौट रहा है।
माना कि श्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री मोदी की अच्छी पसंद हैं , परंतु कई बार ' अच्छी पसंद ' भी निरर्थक सिद्ध हो जाती है। विशेष रूप से नौकरशाही की ओर से आया कोई व्यक्ति एक राजनीतिज्ञ के रूप में बहुत अधिक सफल नहीं हो पाता। हमारे विदेश मंत्री ने कई बार यह सिद्ध किया है कि वह स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हैं और जब बात देशहित की आए तो वह समय के अनुसार विरोधी को माकूल जवाब देना भी जानते हैं।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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