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रंगों के बीच बेरंग दुनिया

रंगों के बीच बेरंग दुनिया

पंकज शर्मा


झूठ की चादर ओढ़े रिश्ते,
सच की बातों से डरते हैं।
स्वार्थ की गलियों में बहती,
भावनाएँ रोज़ सिसकती हैं।
हर चेहरे पर इक मुखौटा,
हर कदम पर धोखा है,
फिर भी दुनिया मासूम बनकर,
प्यार का मौसम खोजती है।
पल-पल रंग बदलती है दुनिया,
और लोग पूछते हैं होली कब है।


बदल रहे हैं अपने साए,
परछाइयाँ भी पराई हैं।
मोल लगाया जा रहा,
अब तो रिश्तों की बिनाई है।
ईमान बिकता है बाज़ारों में,
नेकी गुमसुम बैठी है,
फिर भी दुनिया चाहती है,
हर गली में दीवाली हो।
पल-पल रंग बदलती है दुनिया,
और लोग पूछते हैं होली कब है।


खुशियों के रंग फीके पड़े,
दिलों में अब भी सूनापन है।
मिलावटें इतनी बढ़ गईं,
सच भी लगता अनजान है।
होली तो रोज़ ही आती है,
हर पल रंग बिखेरती है,
पर इंसान को समझ नहीं,
कि उसका मन ही बेरंग है।
पल-पल रंग बदलती है दुनिया,
और लोग पूछते हैं होली कब है।


चलो जलाएँ प्रेम की होली,
रंग चढ़ाएँ विश्वासों का।
मिटा दें मन का सारा मैल,
और गले लगाएँ अपनापन का।
फिर न कोई ये पूछ सकेगा,
कि होली आखिर कब आएगी,
क्योंकि हर दिन होली जैसा होगा,
जब दुनिया सच्चाई अपनाएगी।
पल-पल रंग बदलती है दुनिया,
अब कोई न पूछे—होली कब है!


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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