माँ का दर्द और त्याग
जय प्रकाश कुवंर
अपने बच्चों के प्रति एक माता के प्यार दुलार की कहानियाँ हम सबों ने अनेक पढ़ी और सुनी है। परंतु एक आंखों देखी घटना ने मेरे मन को झकझोर कर रख दिया है और उस गरीब माँ तथा उसके मासूम बच्चे की उस समय की तस्वीर हर समय मेरे आंखों के सामने तैरती रहती है। उस घटना को मैं आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ। लगता है भगवान ने दूनिया में सारे दुख गरीबों के लिए ही बनाया है।
हर रोज की तरह एक शाम को मैं पटना शहर के एक नव निर्मित रोड के किनारे बने हुए पक्के फुटपाथ पर टहल रहा था। कुछ कुछ अंधेरा हो चला था। फुटपाथ के किनारे पेड़ और झाड़ियाँ हैं, जिसमें कभी कभी कोई गरीब मर्द या औरत आराम करते हुए दिख जाते थे। उस दिन एक गरीब औरत अपने एक छोटे बच्चे के साथ वहाँ दिखाई पड़ी, जो झाड़ी में से सुखे टहनी और पतों को बटोर कर ईंट के चूल्हे पर रोटी बना रही थी। पास बैठा उसका छोटा बच्चा भूख से बिलख रहा था। अल्यूमिनियम के पिचके हुए थाली में जो गूंधा हुआ आटा दिख रहा था वह महज दो या तीन पतली रोटी के लायक था। माँ ने दो रोटी सेंक कर एक कागज के टुकड़े पर रख कर उसे अपने बच्चे के सामने खाने के लिए बढ़ा दिया और अंतिम तिसरी रोटी सेंकने लगी। अभी बच्चा रोटी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दो सड़क पर घुमने वाले आवारा कुत्ते झगड़ते हुए वहाँ पहुँच गए। उनके भय से बच्चा जैसे ही डर कर चिल्लाते हुए उठा, कुत्ते दोनों रोटी लेकर भाग गये। बच्चा जाकर अपनी माँ के पीठ पर सटकर रोने लगा। माँ ने तिसरी रोटी जो अपने लिए सेंक रखी थी, उसे अपने बच्चे को तोड़ कर खिलाने लगी। हांलाकि उस एक रोटी से बच्चे का भी पेट नहीं भर सकता था, परंतु उस गरीब माँ के पास उस शाम अंधेरे में और कोई विकल्प नहीं था, सिवाय उस अपने हिस्से के एक रोटी को अपने बच्चे को खिला देने के। वह बच्चे को रोटी खिलाते हुए सिसक कर रो रही थी। दृश्य बड़ा ही दुखदायी और करुण था।
यह पूरा घटनाक्रम कुछ ही समय में घट गया, परंतु अपने पीछे अनेक मार्मिक सत्य छोड़ गया। हम जिस समाज में रह रहे हैं और लम्बी लम्बी बातें करते हैं, वहाँ गरीब की जिंदगी आज भी कितनी दयनीय है। एक गरीब भर दिन भीख मांग कर भी दो रोटी के लायक अन्न नहीं जुटा पाता है। और सबसे बड़ी बात जो देखने को मिली, वो एक माँ का दिल, जो गरीब होते हुए भी अपने बच्चे के लिए कितना ममतामयी है, जो अपने भूख को मार कर अपने बच्चे को अपना खाना खिला देती है, बिना सोचे कि भविष्य में उसका बच्चा बड़ा होकर उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा।
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