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बाजीगर कोई और

बाजीगर कोई और

बात कुर्सी की होती तो खींचातानी भी चलती है।
कवि की टांग खींचने से कविता ही निकलती है।

कविता भावों के मोती दिल का दर्द सुनाती है।
मंचों पर मुखर हुई अड़चन कहां पर आती है।

मान सम्मान मिले कविता को शीर्ष स्थान मिले।
चले लेखनी उस ओर प्रगति और उत्थान मिले।

शब्दों के मोती चुनकर कलमकार इतराता है।
काव्य की बहती गंगा में गीत सुहाना गाता है।

साहित्य सेवा में तत्पर शारदे साधना करता है।
उजियारे की किरणों में अंधकार को हरता है।

वाणीपुत्र कलम पुजारी शब्द बाण नहीं रखते हैं।
नहीं दुखाते दिल किसी का काव्य रस चखते हैं।


भरी उड़ानें अगर किसी ने पंखों को फैलाने दो।
रचा गीत कोई प्रीत भरा होठों तक आ जाने दो।


कठपुतली सब धरा पर बाजीगर कोई और है।
कविता तो छा जाती रह जाता केवल शोर है।


रमाकांत सोनी सुदर्शन


नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

रचना स्वरचित व मौलिक है
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