Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

प्रेम

प्रेम

प्रेम एक छोटा सा शब्द है।
इसका कोई स्थूल रूप नहीं है।
इसका कोई निश्चित आकार नहीं है।
हर कोई प्रेम प्रेम कह कर रटता रहता है।
पर क्या कभी कोई इसे देख पाता है।
क्या कभी कोई इसे पकड़ पाता है।
अगर जबाब नहीं में है।
तो आखिर प्रेम होता क्या है ?
प्रेम एक एहसास है।
प्रेम दिमाग से नहीं, बल्कि दिल से होता है।
प्रेम कहने और लिखने से व्यक्त नहीं हो सकता है।
प्रेम एक ऐसा अनुभव है,
जो हमें खुशियाँ, संतुष्टि और समृद्धि देता है।
प्रेम में लेने का नहीं,
बल्कि देने का भाव अहम होता है।
प्रेम में भरोसा, विश्वास तथा,
समर्पण , समझदारी , संवेदनशीलता और,
सम्मान का भाव अहम होता है।
प्रेम एक मजबूत आकर्षण और,
निजी जुड़ाव की अदृश्य भावना है।
प्रेम सागर जैसा बहुत विशाल होता है,
फिर भी इसे सागर नहीं कहा जा सकता।
क्योंकि सागर की भी सीमाएँ होती हैं।
प्रेम तो वास्तव में आकाश जैसा विशाल है,
जिसकी कोई सीमा नहीं है।
यह असीमित है।
प्रेम को शब्दों में मापा नहीं जा सकता है।
ईश्वर को बिना देखे विश्वास किया जाता है।
प्रेम में भी विश्वास ही होता है।
पास रहने से ही प्रेम नहीं होता है।
दूर रह कर भी प्रेम निभाया जाता है।
असल में कहा जाय तो,
प्रेम से ज्यादा प्रेम का एहसास सुखदायी होता है।

जय प्रकाश कुवंर


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ