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चाहत

चाहत

चाहत बहुत रखते है
अच्छा अच्छा पाने का। 
शुभ फल की चाहत में
क्या क्या हम कर जाते। 
मानों जमाने से हमने
जंग जो लड़ लिया हो। 
इसलिए हमारी कहानी का 
कुछ तो हल मिलेगा।। 

माना मेरी चाहत का
कुछ तो पता होगा। 
जीवन के रंगों का 
कुछ तो अंदाज होगा। 
रंगो से भरी दुनिया में
वे रंग कैसे मैं रहूँगा। 
रंगा रंग जीवन का 
मैं आनंद तो उठाऊँगा।। 

सब कुछ तो मिला है
मुझे उस परमात्मा से। 
कैसे मैं भूल जाऊँगा
अपने पालन हार को। 
जिसने मुझे सराहा है
जीवन के हर मोड़ पर। 
खुशियों से मेरा दमन 
भरकर जो उसने दिया है।। 

जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई

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