शादी और तलाक़
जय प्रकाश कुंवर
आज कल तलाक़ के किस्से,
दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं।
शादी के पवित्र बंधन वाले घर,
टूट कर विखरते जा रहे हैं।।
जब से बर बहू देखा देखी और,
प्यार के दौर का जमाना आया।
तब से शादीशुदा जीवन में,
अशांति का भूत समाया।।
आज कल भी शादी में,
दूल्हा दुल्हन द्वारा कसमें तो खायी जा रही हैं।
पर शादीशुदा जीवन में,
एक भी नहीं निभाई जा रही हैं।।
अब सुहागरात गुजरा नहीं,
कि खटपट शूरू हो जा रहा है।
बर बहू में एक दूसरे पर,
आरोप प्रत्यारोप कहर ढा रहा है।।
सास ससुर, माँ बाप को किनारे ठेल,
समझौता होने नहीं पा रहा है।
अंत में तलाक का मामला,
कोर्ट कचहरी तक पहुँच जा रहा है।।
पहले लड़का लड़की को,
बिना देखे शादियां होती थी।
जवानी से बुढ़ापे तक साथ गुजार,
ससुराल से दुल्हन की अर्थी उठती थी।।
ऐसा नहीं कि तब खटपट,
बर बहू में नहीं कभी होता था।
हर समस्या का समाधान तब,
शांति से घर में ही होता था।।
शादी में सात कसमें तब भी,
दूल्हा दुल्हन खाते थे।
वादे और कस्में हंसी खुशी ,
दोनों जीवन भर निभाते थे।।
हम सब भारतवासी हैं, और
शादी ब्याह हमारा एक संस्कार है।
यह रिश्ता कोई गुड्डा गुड्डी का खेल नहीं ,
यह हमारे परिवारिक जीवन का आधार है।।
यह रिश्ता किसी पीढ़ी में बिगड़ गया,
तो पीढ़ी दर पीढ़ी बिगड़ता जाएगा।
फिर किसी के संभाले नहीं संभलेगा,
और पूरब पश्चिम में कोई भेद नहीं रह जाएगा।।
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