होली के रंग,खुशियों के संग।
डॉ.अंकेश कुमारहोली के रंग,खुशियों के संग।
फागुन की मस्ती में फागुन के ढंग।
बरसे गुलाल,पुष्प छाए सतरंगी,
भीगे है मन सबके भीगे है अंग।
घर से निकल पड़े, मस्तों की टोली,
होली है होली में खुद बने रंगोली।
होलिका की अग्नि में नफरत के भाव जले,
दुख दर्द,कष्ट मिटे प्रेम के सुमन खिले।
रंगों में रंग छाए,खान पान खूब भाए,
रिश्तों के किसलय संग अधराें ने गीत गाए
फगुआ के सुर में गूंजे, ढोलक मृदंग,
हर्षाए, बौराए खुलकर बसंत।
अंकेश
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