नशा , व्यसन , नशामुक्ति
कौन सी है ऐसी सूक्ति ,जिससे मिले ऐसी युक्ति ।
चला जाए मन से व्यसन ,
मिल जाए नशा से मुक्ति ।।
गाॅंजा पी गॅंजेड़ी कहाऊॅं ,
दारू पी नशेड़ी कहाऊॅं ।
नशे में जैसे स्वर्ग मिलता ,
नाली रूपी गद्दे सो जाऊॅं ।।
बीड़ी सिगरेट खैनी तंबाकू ,
जहरीला होता यह भाई ।
भले चंगे जीवन में भी ये ,
देता यह जीवन झुलसाई ।।
नशा कोई हल्का न होता ,
नशारंभ अग्नि चिनगारी ।
आया जो है वश में इसके ,
अग्नि में जीवन जाती मारी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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