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हम धरा के धार तू धरा के धरोहर

हम धरा के धार तू धरा के धरोहर

ना हमहीं ओहर ना तू ही ओहर ,
अबहीं अबोधि ज्ञान बाटे तोहर ,
हम पाकल पूज्य कुष्मांड कोंहर ,
हम धरा के धार तू धरा के धरोहर ।
तू बाड़s अबहीं त पापा के बेटा ,
हम बानी तोहरा पापा के पापा ।
तोहर आपा अबहीं मिलल नईखे ,
हमहूॅं खो रहल बानी अब आपा ।।
तू ही धरा के बाड़s लाल मोहर ,
हमरो तोहरो में गवाईल सोहर ,
तू करिहs आपन मन से पढ़ाई ,
हम देहब हर पशुअन के पोहर ।
हमर हरि सब छिन रहल बाटे ,
उजर भईल जवन केश रहे करिया ।
मुख में दाॅंत नाहीं पेट में ऑंत नाहीं ,
सब लुटा रहल बा दिने दुपहरिया ।‌।
सारा दूरी मिट गईल दाॅंत रहे खोंहर ,
बुढ़ापा में ढह गईल पेट में रहे गोहर ,
हम भईलीं बुढ़वा तू भईल छोंहर ,
हम धरा के धार , तू धरा के धरोहर ।
हमहीं बानीं सभ्यता शिष्टता निष्ठा ,
हमहीं व्यवहार संग आचार बानीं ।
स्वागत सत्कार में अग्रसर बानीं ,
अबहीं खाहीं पिए में लाचार बानीं ।।
तोहरा उतरे के बा थाह किनारा ,
हम पहुॅंचल अब मजधार बानीं ।
कब छुट जाई पतवार हाथ से ,
कईसे कह दीं दरिया पार बानीं ।।
हम दुनिया से होखब अब बिदा ,
अब आयु के भईलीं हम ठोहर ,
ना हमहीं ओहर ना तू ही ओहर ,
हम धरा के धार तू धरा के धरोहर ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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