प्यारी बेटी
जिस दिन से जन्म हुआघर में प्यारी बेटी का।
उस दिन से आई है
खुशियाँ घर में अपार ।
कहने और सुनने को
मेरे पास शब्द ही नही।
तुम खुद लक्ष्मी तुलसी हो
मेरे घर आंगन की बेटी।
मैं भूल नही सकता तुझे
अपने जीते जी बेटी।
तुम जान हो हमारे दिलकी।।
सब कुछ बदल गया है
घर द्वार और अंगान का।
बेटी के कदम पड़ते ही
तकदीर बदल गई।
बेटी और बेटा तुम ही हो
हमारे घर परिवार के।
मेरी जिंदगी की तुम
हो अब से पतवार।
मैं भूल नही सकता तुझे
अपने जीते जी बेटी।
तुम जान हो हमारे दिलकी।।
हम सबके दिलों की तुम
अब से जान बन गई।
आदर और सम्मान की तुम
एक पहचान बन गई।
दो पल न देखो तुम तो
सब पूँछते है बस तुम्हें।
मानों की घर की देखो
अब जान ही निकल गई।
मैं भूल नही सकता तुझे
अपने जीते जी बेटी।
तुम जान हो हमारे दिलकी।।
सोचता हूँ की मैं कैसे
बेटी तुझे विदा करूँगा।
अपने जिगर के टुकड़े को
कैसे मैं अलग करूँगा।
समाज के इस दस्तूर को
क्या मैं तोड़ पाऊँगा।
और खुद के ही अंश को
मैं कैसे जुदा करूँगा।
मैं भूल नही सकता तुझे
अपने जीते जी बेटी।
तुम जान हो हमारे दिलकी।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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