मतलबी दुनिया
मतलब की है ये दुनियाऔर मतलब के है लोग।
मतलब निकलते ही ये
पहचानते नही किसी को।
अपने पराये का भी
फर्क रखते ही नही।
लूटते है अपना बनकर
ऐसे लोग हम सभी को।।
मतलब की है ये दुनिया
और मतलब के है ये लोग।।
रिश्तों की ये परिभाषा
क्या समझायेंगे ये लोग।
मतलबी लोगों की दुनिया में
रिश्तें भी बनते है मतलबी।
अवसर मिलने पर ये सब
डस लेते है अपनो को भी।
और भूल जाते है रिश्तों को
मतलब अपना निकलते ही।।
मतलब की है ये दुनिया
और मतलब के है लोग।।
कुछ वर्षो से ये माहौल
बहुत ही पनप रहा है।
मतलब के लिए इंसान
देश समाज से खेल रहा।
और हँसता खेलता देश
क्यों आग में जल रहा।
स्वार्थ की हदों में देखो
सब कुछ मिट रहा।।
मतलब की है ये दुनिया
और मतलब के है लोग।।
खुलकर जीने वालों का
अंदाज अलग होता है।
रिश्तों की परिभाषा भी
मतलबियों से अलग होता है।
रिश्तें ये जिससे बनाते है
उन्हें दिलसे निभाते है।
फिर ता उम्र सुख-दुख में
साथ खड़े रहते है।।
मतलब की है ये दुनिया
और मतलब के है लोग।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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