मात-पिता के चरण छुओ
मात-पिता के चरण छू आशीषों से झोली भर लो।स्वर्ग बसा हैं कदमों में थोड़ा उनसे मीठा बोलो।
सिर पर साया हो खुशियों का मेघ छाया रहता।
माली खिलती बगिया के चमन मुस्काया रहता।
जो तुम्हारे हितकारी जीवन की कला सिखाते हैं।
बाधाएं रस्ता छोड़ चले जो तूफां से भीड़ जाते हैं।
जो ठंडी छाया बरगद सी शीतलता का झरना है।
जिनकी आंखों में स्नेह आदर सदा ही करना है।
सेवा के अधिकारी है वात्सल्य उमड़ता बढ़कर।
संस्कारों से महकाया जीवन कीर्तिमान गढ़कर।
त्याग समर्पण की मूरत मार्गदर्शक है सलाहकार।
शिक्षा का दीप जलाकर सारा जीवन देते संवार।
जो घर की बुनियाते हैं हंसती खेलती यादें हैं।
तुम बुलंदियों को छुओ उनके अटल इरादे हैं।
परिवार प्रेम का आधार आठों याम बरसता प्यार।
मात पिता का सम्मान यश वैभव खुशी है अपार।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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