अब न कनहूँ अन्हार हौ अनोर हो गेलो
डॉ रामकृष्ण मिश्रअब न कनहूँ अन्हार हौ अनोर हो गेलो।
नीन तोड़ऽ जगऽ छछात भोर हो गेलो।।
कोई त लाल रंग घोरके पोरौलक हे।
रात करिआ लगऽ हलो से गोर हो गेलो।।
अकास साफ सुथर बेस बगबगाइत हौ।
गते- गते सिनेह सब किसोर हो गेलो।।
जने-तने इंजोर अकबकाके भाग रहल।
कि बाड़ से खुलल भुखाल ढोर हो गेलो।।
इहाँ त साँस हे साबुत हुलास भर अखनी।
परेम अपने मने बर -पीपर सोर हो गेलो।।
तनी- तनी गो भाव हल जे कहूँ कोना में।
सरेक होके केतारी के पोर हो गेलो।। ९
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