उसके कुंवारे नयन,अनंत नेह सिंधु से
अंतरंग विमल प्रवाह,प्रीत पथ भव्य लगन ।
मृदुल मधुर चाह बिंब,
तन मन अनंत मगन ।
अक्स छटा अद्भुत अनूप,
प्रेम तरंग ह्रदय बिंदु से।
उसके कुंवारे नयन,अनंत नेह सिंधु से।।
जनमानस व्यवहार सीमा,
सर्वत्र खनक सनक ।
परिवार समाज रिश्ते नाते,
स्नेह स्नेह सबको भनक ।
हर घड़ी हर पहर जीवन,
सौम्य मधुर सदृश इंदु से ।
उसके कुंवारे नयन,अनंत नेह सिंधु से ।।
दृष्टि सृष्टि संपूर्ण क्षेत्र ,
हर जगह मनमोहक रूप ।
राग रंग श्रृंगार परिधान,
सब तुम्हारी रूचि अनुरूप ।
अधर पटल निशि दिन,
स्वर उपमित निर्मल अंबु से ।
उसके कुंवारे नयन,अनंत नेह सिंधु से ।।
अंतर्मन घुंघुरू मृदुल लय,
मिलन विरह भव्य छवि ।
दर्शन आनन रमणीयता ,
मस्त मलंग हिलोर नवि ।
अप्रतिम तरुण सौरभ संग,
रग रग आह्लाद सम शंभु से ।
उसके कुंवारे नयन,अनंत नेह सिंधु से।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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