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अबला नहीं सबला है नारी

अबला नहीं सबला है नारी

(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)

अबला नहीं सबला है नारी,
कुछ भी कहें बदली है नारी।
विषम परिस्थितियों से लड़कर,
बड़ी मुश्किल से संभली है नारी।
लाखों बाधाएं राह में आए,
बड़ी हिम्मत से लड़ती है नारी।
दिन भर कठिन परिश्रम कर,
घर - गृहस्थी संभालती है नारी।
तिरस्कार अपनों से सहकर,
घुट - घुट कर जीती है नारी।
पर आज स्थिति बदल गई है,
शिक्षित हो नारी संभल गई है।
शिक्षा का हुआ ऐसा चमत्कार,
नहीं रही नारियां बेरोजगार।
आजकल की नारियां गजब ढा रही है,
अपने कार्यों से वह सबको लुभा रही है।
रेल चला रही वो वायुयान उड़ा रही है,
शोध कर रही वो मशीनगन चला रही है।
जीवन के हर क्षेत्र में वो डंका बजा रही है,
पुरुषों के सारे काम वो खुद ही कर रही है।


सुरेन्द्र कुमार रंजन

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