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संस्कारहीनता

संस्कारहीनता

आजकल के बच्चे भी क्या गुल खिला रहे हैं,
लाचार मां - बाप पर अत्याचार कर रहे हैं।
ना इज्जत दे रहे ना सत्कार कर रहे हैं,
घर के सारे काम उनसे ही करवा रहे हैं।


ना खाना दे रहे ना इलाज करवा रहे हैं,
बस नौकरों की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
हर खुशियों से उन्हें महरुम कर रहे हैं,
बेवजह उन्हें खून की आंसू रुला रहे हैं।


मर्यादा की सारी हदें वो पार कर रहे हैं,
घर से निकाल उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा रहे हैं।
जन्मदाता के संग इस तरह का व्यवहार,
पाश्चात्य सभ्यता का ही दुष्परिणाम है।


आज बच्चे उदंड और दिशाहीन हो गए हैं,
स्वार्थ में अंधा और चरित्रहीन हो गए हैं।
मां - बाप की सेवा से उदासीन हो गए हैं,
इसी कारण बच्चे संस्कारहीन हो गए।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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