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नारी तू नारायणी

नारी तू नारायणी

पंकज शर्मा
नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना, एवं मान,
जिस गृह रहती तू , वहां होता नित उत्थान।
तेरी ममता से ही बहती, प्रेम-सरिता अपार,
तेरे त्याग से ही सजे, हर रिश्ते का संसार।


क्या यह है मात्र एक दिन का ही गुणगान?
करें विचार, क्या दिया यथोचित सम्मान?


सदियों तक झेली पीड़ा, रूढ़ियों की बेड़ियाँ,
फिर उठ खड़ी हुई, बन ज्योति की कड़ियाँ।
सीता, राधा, मीरा बन, सहनशीलता दिखाई,
अब चंडी, काली बन, न्याय की बात उठाई।


अबला नहीं, सबला है, सशक्त हुई हर राह,
गगन चूमने निकली, रचने नया इतिहास।
शिक्षा दीप जलाकर, हर द्वार उजाला किया,
बंद हुए वे द्वार जहाँ, नारी को दबाया गया।


आज नहीं कोई सीमा, बंधन, श्रृंखला,
अब बढ़ रही है नारी, बन युग की प्रेरणा।


देखो! बन वैज्ञानिक, गगन में भरी उड़ान,
सेना में बढ़-चढ़ कर चली, रणचंडी बन।
राजनीति के मंचों पर, अब उसका राज चले,
कला, साहित्य, व्यापार में, प्रतिमान खड़े।


निकट भविष्य की है यह आशा,
नारी होगी नेतृत्व की परिभाषा।


बदल रहा है समाज, बदल रही परिभाषाएँ,
अब न बंधन होगा, न थमेंगी संभावनाएँ।
नारी अब सिर्फ सहनशीलता का रूप नहीं,
वह है शक्ति, संघर्ष, विकास और धूप भी।


तू नमन योग्य, पूज्य, सम्मान की अधिकारी,
अब न तेरा गुणगान, तेरा युग है जारी।


संकल्प लें, कि अब हर दिन होगा नारी का,
अधिकार बढ़ेंगे, शोषण न होगा उसका।
शक्ति, प्रेम, ज्ञान, सृजन की अनुपम कहानी,
नारी नहीं मात्र व्यक्ति, वह खुद में महारानी।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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