स्वाभिमान साहित्यिक मंच पंजाब की ओर से 32वें राष्ट्रीय कवि दरबार का आयोजन

पटियाला (पंजाब)। बीते दिन स्वाभिमान साहित्यिक मंच पंजाब की ओर से 32वें राष्ट्रीय कवि दरबार सजाया गया।कार्यक्रम के संयोजक नरेश कुमार आष्टा थे। कार्यक्रम के संचालन की बागडोर आदरणीया जागृति गौड़ ने शायराना अंदाज़ में बखूबी संभाली। कार्यक्रम को यूट्यूब चैनल स्वाभिमान साहित्य पर लाइव प्रसारण किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत पटियाला पंजाब से जागृति गौड़ जी ने हे! शारदे मां वंदना के साथ की। बिलासपुर हिमाचल प्रदेश से जीवन कुमार जी. के. ने बेटियों पर बहुत ही शानदार रचना _ अब मैं बड़ी हो गई हूं पापा, कब तक उंगली पकड़ोगे पापा सुनाकर कार्यक्रम को ऊंचाइयों पर ले गए। इनके बाद समीर द्विवेदी नितान्त जी ने प्रकृति पर विशेष रचना बादल जोर लगाते रहे छुपा ना सके सूरज को, वो एक अलग बात है तेज किरण मद्धिम हो सुनाकर वाह-वाही लूटी। इनके पश्चात सोजत सिटी राजस्थान से वरिष्ठ ग़ज़लकार रशीद गौरी जी ने अपनी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल सुनाई _खुदा करे हमारा कलाम हो जाए, निगाह मिले और सलाम हो जाए सुनाकर समां बांध दिया। सागर ,मध्यप्रदेश से दिव्यांजलि सोनी 'दिव्या' ने नींद पर अपनी कविता सुनाई।
बिहटा, बिहार से दुर्गेश मोहन ने माँ दुर्गा पर एक शानदार रचना सुनाई _ सारे जहां से प्यारा, सब का हो न्यारा, आततायी
महिषासुर को माँ दुर्गे ने संहारा सुनाकर माहौल को शानदार कर दिया। जागृति जी अपने संचालन में शेरो -शायरी से सभी का दिल लूट रहे थे और कह रहे थे मैंने उसको इतना देखा ,जितना देखा जा सकता था, लेकिन फिर भी दो आंखों से ,कितना देखा जा सकता था सुनाकर वाह_ वाही लूटी।पटना से डॉ. अनुज प्रभात ने भावपूर्ण रचना मिट्टी का दर्द सुनाई। पटना से ही सीमा रानी ने आज की सच्चाई बताते हुए कहा। कसूर तुम्हारा है, जो पास अपने बुलाते ही नहीं हो'। वरिष्ठ रचनाकार और चित्रकार आदरणीय सिद्धेश्वर जी पटना, बिहार से अपनी आजाद ग़ज़ल दहकती आग से दोस्ती कर ली मैंने, सूखने लगी है मुहब्बत की नदियां और आज़ाद ग़ज़ल के किरदारों में हूँ, अफ़सानों में हूँ ,मैं गज़ल की महफ़िल के दीवानों में हूँ सुना कर सभी को आत्म विभोर कर दिया। कटिहार से प्रसिद्ध हास्यरस और व्यंग्यात्मक कवि कुमार प्रकाश जी ने एक व्यंग्यात्मक रचना दो कुत्तों की वार्तालाप सुनाकर कर सभी को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। जागृति गौड़ की रचना दु:शासन
अब एक नहीं, यहां चारों ओर, एक अर्जुन सा कौन आएगा यहां, ना कर तू इंतजार जहां कृष्ण का और मुझे पता है मैं क्या हूं मुझे मशवरा न चाहिए सुनाकर अपनी हाज़िरी लगवाई।
पटना से सुधा पाण्डेय जी ने प्रकृति पर एक रचना एक शाम ठहरी सी और अंत में राज प्रिया रानी की नज़्म अक्सर राहों में बिछी मुश्किलें पार कर दिया करते हैं, जन्मों के रिश्तों में पड़ी दरारें लोग मिटा दिया करते हैं। सुनाकर वाह _वाही के साथ तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देते हुए कार्यक्रम का समापन किया गया। कार्यक्रम को यूट्यूब चैनल स्वाभिमान साहित्य पर दर्शकों के द्वारा खूब पसंद किया गया।
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