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बिगड़ल बोली

बिगड़ल बोली

लाज शरम मर ग‌इल।
सब कुछ उजर ग‌इल।।
अब ना समझदारी बा।
गजब दुनियादारी बा।।
बड़ में ना बड़प्पन बा।
छोट में ना लिहाज बा।।
आग नियर बोली बा।
शरम बा ना लाज बा।।
सब कोई सेयान बा।
कलियुग बदनाम बा।।
कड़वा लागत रिश्ता बा।
मुंह पर ना लगाम बा।।
जवना समाज के बोली बिगड़ ग‌इल।
ओह समाज के समुझि सत्यानाश भ‌इल।।
बुढ़ पुरनियां कहत रहे।
निमन बोली से घर समाज बंधल रहे।।
बबुआ ,भइया , काका, चाचा,
इहे सब कर जबान रहे।
छोटका बड़का केहू के
केहू रे तो कबो ना कहे।।
रे तो क‌इला में अब खुब शान बा।
इहे बड़प्पन बा, इहे गुमान बा।।
एही से अब लागत बा कि,
लाज शरम मर ग‌इल।
सब कुछ उजर ग‌इल।।

जय प्रकाश कुंवर


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