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इस कडी धूप मेँ

इस कडी धूप मेँ

अंजनी कुमार पाठक 
इस कडी धूप मेँ हम झुलसते रहे
आग बरसती रही हम तपते रहे
सूर्य उगने के साथ तपिश भी बढी
पारा चढता गया मुश्किलें भी बढी
गर्म हवाओं के झोंके हम सहते रहे
आग बरसती रही हम तपते रहे
पसीना से सराबोर बुरा हाल है
छाया मिलती नहीं जीना दुश्वार है
जरस्तर जमीँ से खिसकते रहे
आग बरसती रही हम तपते रहे
सबकी चाहत बढी हवा ठँडी बहे
जमकर बारिश भी हो ताकि राहत मिले
पेड कटते रहे वन उजडते रहे
आग बरसती रही हम तपते रहे
सबसे विनती यही वृक्षारोपण करें
जल जीवन के लिये जतन हम करें
तपती धरती से जन जन को राहत मिले
आग बरसती रही हम तपते रहे।


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