हम भारत के बाल प्यारे ,
छोटे-छोटे हैं हाथ हमारे ,पर बड़ा काम कर जाऊॅं ,
आशीष मिले हमें तुम्हारे ।
हमारे हाथ छोटे पैर छोटे ,
तन भी हमारे तो छोटे हैं ,
भारतीय बच्चे मन चंचल ,
मस्तिष्क नहीं ये खोंटे हैं ।
पाक में जा आग लगा दूॅं ,
अकेला क्षमता रखता हूॅं ,
वीर अर्जुन का पुत्र हूॅं मैं ,
कभी भय न चखता हूॅं ।
बहुत सारे अर्जुन देश में ,
अभिमन्यु की कमी नहीं ,
जिस धरा पे मारूॅं हाथ ,
न आग लगे जमीं नहीं ।
हम उसी राष्ट्र के बच्चे हैं ,
जहॅं न्याय वीर पाॅंच भाई ,
हम बच्चे उन्हीं के बेटे ,
कर न सके जो भरपाई ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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