ससुराल
जय प्रकाश कुंवरबाबुल का घर छोड़ कर,
लड़की जब ससुराल में आती है।
अनजाना यह ठौर ठिकाना,
उसका अपना घर कहलाती है।।
जुड़ता भाग्य उसी घर से अब,
उसका नया ठीकाना है।
मान उसी को स्वर्ग से सुन्दर,
जीवन यहीं बिताना है।।
लड़की घर की लक्ष्मी होती,
घर की मर्यादा उसके हाथ।
जैसे सागर ने सौंपा लक्ष्मी को,
लक्ष्मी नारायण विष्णु के साथ।।
रहने का घर क्षीरसागर है,
सोने का शैय्या हैं शेषनाग।
फिर भी माता लक्ष्मी से है,
उतम जग में किसका भाग्य।।
माता पार्वती ने शिव को ब्याहा,
नंदी चढ़ कैलाश पर्वत पर आयीं,
भाग्य बड़ा माता से किसका,
जगत जननी कहलायीं।।
यही कहानी हर लड़की का,
यह जग ऐसे ही चलता है।
उसका अपना व्यवहार कर्म ही,
ससुराल में उसका भाग्य बनता है।।
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