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समाज

समाज

कल दृश्य कुछ और था,
कुछ और दृश्य है आज।
यही है रोज बदलता हुआ,
अब हमारा भारतीय समाज।।
कभी था यहाँ प्रेम भाईचारा।
आज है घृणा का नजारा।।
मानव वही है, तन भी वही है,
पर अब नये परिवेश में ढल गया है।
अकेले रहना सम्मिलित पर हावी है,
अब समाज का मन बदल गया है।। 
 जय प्रकाश कुंवर

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