पुरानी यादें
वह एक उम्र का पड़ाव था,मन में अजीब प्रेम भाव था।
हर चेहरा अच्छा लगता था,
किसी से ना दुराव था।।
चाह उभर आता था,
खुब मन को भाता था।
तब लगता नहीं था, यह सपना है,
लगता था यही अपना है।।
किसी का मुंह खुल न पाता था ,
समय निकलता जाता था।
उन दिनों ऐसा ही कुछ लय था,
दोनों तरफ घर समाज का भय था।।
सब अपने रास्ते चलते गए,
रेत सा मुठ्ठी से फिसलते गए।
हाथ लगा वो अनजाना था,
चेहरा न देखा न पहचाना था।।
वही इस जीवन से जुड़ गया,
हर रास्ता यहाँ आकर मुड़ गया।।
तब ऐसे ही प्रेम व्यवहार बनता था।
और ऐसे ही घर संसार चलता था।।
जय प्रकाश कुंवर
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