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आतंकी जड़ें

आतंकी जड़ें

आग लगा दो तुम पाक में ,
स्वयं मिट्टी में मिल जाएगा ।
जल जाऍंगी आतंकी जड़ें ,
भारतीय उर खिल जाएगा ।।
अमरबेल सा छुपी हैं जड़ें ,
केवल लताऍं दिख रही हैं ।
हुआ नरसंहार पहलगाम में ,
सारी आत्माऍं चीख रही हैं ।।
आत्माओं को शांति मिलेगी ,
आत्माओं से आशीष मिलेगा ।
नष्ट होंगे वे आतंकी सारे ,
सहायक हमें ईश मिलेगा ।।
बढ़ता रहे यह कदम हमारा ,
कदम कभी यह रुके नहीं ।
प्रथम हम हैं भारतवासी ,
हौसला कभी यह टूटे नहीं ।।
नहीं रुकेंगे व नहीं झुकेंगे ,
सीधे मारेंगे या हम मरेंगे ।
छोड़ेंगे न आतंक का रास्ता ,
सर्वनाश उनका हम करेंगे ।
पर्यटक सैलानी हताश न हो ,
पहलगाम तो पहलगाम रहेगा ।
वही रहेंगी सारी ये सुविधाऍं ,
आतंक नहीं पावन धाम रहेगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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