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बहारें फिर से आएगी

बहारें फिर से आएगी

फिर से कलियां महकेगी, फिर पंछी गाएंगे।
बहारें फिर से आएगी, तो भंवरे गुनगुनाएंगे।

घटाएं फिर से छाएगी, मौसम फिर लहराएगा।
तराने फिर से गाएंगे, होठों पर गीत आएगा।

हसीं वादियो में गूंजेंगे, दो दिलों के अफसाने।
प्रीत भरे अनमोल मोती, बोल मीठे बड़े सुहाने।

नैन नीर कहे मन की पीर, दुखड़ा कोई ना जाने।
जिस पर बीते व्यथा वही, दुख दर्द को पहचाने।

आशाओं के पंख लगाके, सपने नए सजाएं हम।
बागों में फिर पुष्प खिलेंगे, चमन महकाए हम।

फिर से वाणी अधरों से, यूं प्रेम सुधा बरसाएगी।
फिर से गीत होठों से, हर्ष की घड़ियां आएगी।

फिर होगा अतिथि सत्कार, बुजुर्ग सम्मान यहां।
शौर्य पराक्रम गाथाएं, रणवीरों का गुणगान यहां।

फिर से विश्वगुरु भारत, वेद धर्म का प्रचार यहां।
फिर से ज्ञान गंगा बहे, निपजे नव विचार यहां।


रमाकांत सोनी सुदर्शन


नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

रचना स्वरचित व मौलिक है


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