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आहत पिता

आहत पिता

कैसे कहूं कुछ कहा नहीं जाता,
कहे बिना भी अब रहा नहीं जाता।
खून जलाकर जिन बच्चों को पाला,
दूध पिला कर जिन बच्चों को पाला ।
सुख को त्याग जिन बच्चों को पाला,
अरमानों को दबा जिन बच्चों को पाला।
वक्त की नजाकत तो देखिए कि आज ,
वही बच्चे मां बाप को आंखें दिखा रहे हैं।
सम्मान देने के बदले अपमानित कर रहे हैं,
उनकी गलतियों को अंगुली पर गिना रहे हैं।
उनकी त्याग और तपस्या को धत्ता बता रहे हैं,
अपनी नाकामियों को बस यूं ही छिपा रहे हैं।
निर्दयता तो अब इनकी इतनी बढ़ गई है कि,
घर से निकाल उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा रहे हैं।
त्याग और बलिदान का अच्छा सिला दिया है,
मां बाप की इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है।
राम जी कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा,
बात बात में माता पिता को बेटा आंख दिखाएगा।

सुरेन्द्र कुमार रंजन

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