सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव!
- "... यह तो भारत को पुनः तेजस्वी बनाने और सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का जागरण है! " - प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरि
सनातन संस्था के माध्यम से पिछले 25 वर्षों से अखंड रूप से हिन्दू राष्ट्र के लिए जागरण कर रहे परमश्रद्धेय डॉ. जयंत आठवले का कार्य अद्भुत और अत्यंत विलक्षण है। उनके 83 वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में गोवा में 17 से 19 मई 2025 के कालावधि में ‘सनातन राष्ट्र शंखनाद महोत्सव’ का आयोजन किया गया है। यह केवल एक महोत्सव नहीं, बल्कि भारत को पुनः तेजस्वी और समर्थ बनाने तथा सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का एक महान जागरण है, ऐसा गौरवोद्गार 'श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास' के कोषाध्यक्ष प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरिजीने महोत्सव हेतु भेजे अपने शुभसंदेश में व्यक्त किए हैं।
उन्होंने आगे कहा कि, ‘सनातन संस्था’ के माध्यम से 25 वर्ष पूर्व जो कार्य प्रारंभ हुआ, आज उसकी फलश्रुति के रूप में हजारों समर्पित कार्यकर्ता निष्काम भावना और स्वयंशासन के साथ स्थान-स्थान पर जाकर सनातन धर्म का प्रचार कर रहे हैं। इन कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन को स्वाध्याययज्ञ, सेवायज्ञ और लोकजागरणयज्ञ में परिवर्तित कर दिया है। यह कार्य अत्यंत विलक्षण है और इसी से सनातन राष्ट्र के अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होगा। इस महोत्सव में राष्ट्रनिष्ठ नेता, धर्माचार्य, कार्यकर्ता और सनातन प्रेमी एकत्र होकर विचारमंथन करेंगे। इस मंथन से केवल नवनीत नहीं, बल्कि अमृत की प्राप्ति होगी और उसी अमृतकलश से सनातन राष्ट्र को नवतेज प्राप्त होगा।
आज यदि भारत को समर्थ राष्ट्र बनाना है, तो सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों की पुनर्स्थापना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि भारत की शक्ति से ही विश्व में समता, बंधुता और सच्ची स्वतंत्रता टिक सकती है। इसलिए यह कार्य किसी व्यक्ति या संस्था का नहीं, अपितु धर्म और राष्ट्र का कार्य है। और इसलिए यह प्रत्यक्ष भगवान का कार्य है।
अतः सभी धर्मप्रेमी, राष्ट्रनिष्ठ कार्यकर्ता, नेता, धर्मगुरु और सामान्य भक्त इस महोत्सव में सहभागी बनकर अपनी श्रद्धा और सेवाभाव का योगदान दें। सनातन धर्म की जड़ों को और अधिक मजबूत करने तथा भारत के सुंदर, समृद्ध भविष्य हेतु यह महोत्सव एक स्वर्णिम अवसर है। इस महामंथन से प्राप्त तेज से भारत गगनभरारी लेगा और सनातन धर्म का दिव्य प्रकाश संपूर्ण विश्व में फैलेगा। अतः आइए हम सभी एकत्र आकर इस दिव्य कार्य में सहभागी हों और भारत को उसके सनातन तेज से पुनः गौरवान्वित करें। ऐसा आह्वान भी प.पू. महाराजश्री ने अपने संदेश के अंत में किया।
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