Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

वीर सावरकर: एक व्यक्ति नहीं : एक विचार

वीर सावरकर: एक व्यक्ति नहीं : एक विचार

डॉ. संगीता सागर , सहायक मंडल प्रबंधक
विनायक दामोदर सावरकर, यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या, तर्क, तलवार की धार, तिलमिलाहट और तितिक्षा जैसे अनेक अर्थों का साकार रूप थे। उनका जीवन एक ऐसे योद्धा की गाथा है जिसने अपनी मातृभूमि को दासता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। 28 मई 1883 को नासिक के एक छोटे से गाँव में जन्मे सावरकर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनकी कुशाग्र बुद्धि और क्रांतिकारी स्वभाव बाल्यकाल से ही झलकने लगे थे, जो समय के साथ और भी प्रखर होता गया। अपनी शिक्षा के दौरान ही सावरकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे थे। 1906 में वे कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए, जहाँ उन्होंने अन्य भारतीय छात्रों से मिलकर देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए गहन विचार-विमर्श किया। 1907 में लंदन में उन्होंने भारतीय छात्रों को संगठित कर 1857 के विद्रोह की 50वीं वर्षगांठ मनाई और उसे "भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम" का गौरवपूर्ण नाम दिया।
लंदन प्रवास के दौरान सावरकर ने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं - "मेजिनी", "सिखों का इतिहास" और "भारत का प्रथम स्वतंत्रता युद्ध का इतिहास"। उनकी तीसरी पुस्तक ने उन्हें पूरे इंग्लैंड में एक खतरनाक क्रांतिकारी के रूप में ख्याति दिलाई। यह पुस्तक क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान प्रेरणास्रोत बन गई, जिसने उन्हें स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपना जीवन न्योछावर करने के लिए प्रेरित किया। अंग्रेजों ने शीघ्र ही इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया, और सावरकर उनकी आँखों की किरकिरी बन गए। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेज सरकार अवसर की तलाश में थी।
सावरकर ने कानून की परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली, परंतु उन्हें वकालत करने का लाइसेंस इस शर्त पर दिया जा रहा था कि वे भविष्य में कभी राजनीति में भाग नहीं लेंगे। स्वाभिमानी सावरकर ने यह अपमानजनक शर्त अस्वीकार कर दी। इसी बीच उन्हें अपने भाई, गणेश विनायक सावरकर की जज जैक्सन की हत्या के आरोप में गिरफ्तारी की सूचना मिली। दुर्भाग्यवश, हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल सावरकर की थी। इसी आरोप में 13 मार्च 1910 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें समुद्री मार्ग से भारत लाया जा रहा था। जब जहाज मार्सलीज बंदरगाह पर रुका, तो सावरकर साहसिक कदम उठाते हुए समुद्र में कूद गए और तैरकर किनारे तक पहुँचने में सफल रहे। परंतु, वहाँ उन्हें फ्रांसीसी सैनिकों ने पकड़ लिया और वापस अंग्रेज सैनिकों के हवाले कर दिया। भारत लाकर उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई और अंडमान-निकोबार के कुख्यात सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया। स्वतंत्रता के संघर्ष में वीर सावरकर एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें एक ही जीवन में दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। सेल्यूलर जेल की काल कोठरी नंबर 52, जिसकी लंबाई 13.5 फीट और चौड़ाई 7.5 फीट थी, सावरकर का नया ठिकाना बनी। नौ फीट की ऊंचाई पर एक छोटी सी खिड़की वाली इस कोठरी का एक हिस्सा शौचालय के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यहीं से सावरकर की प्राणघातक और अंतहीन यातनाओं का सिलसिला शुरू हुआ, जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सेल्यूलर जेल के कैदियों को कोल्हू से बांधकर तेल निकलवाया जाता था, और प्रत्येक कैदी को दिनभर में 13 किलो तेल निकालना अनिवार्य था। कम तेल निकालने पर उन्हें भोजन नहीं दिया जाता था और बेरहमी से पीटा जाता था। अंडमान में अंग्रेज जिस बग्गी में चलते थे, उसे कैदी खींचते थे। पीने के लिए गंदा पानी दिया जाता था और भोजन में कीड़े चलते रहते थे, जिसे खाकर कैदियों को उल्टी और दस्त की शिकायत हो जाती थी। कैदियों के कपड़ों में कीड़े डाल दिए जाते थे और वही कपड़े उन्हें पहनने के लिए मजबूर किया जाता था। मानवता को शर्मसार करने वाली ऐसी अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। इतनी असहनीय पीड़ा के बावजूद सावरकर ने हिम्मत नहीं हारी और क्रांति की मशाल को जलाए रखा। इसी दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस के कारण वे 'वीर सावरकर' कहलाए। उन्होंने 1911 से 1921 तक अंडमान के कारागार में कठोर यातनाएं सहीं। वीर सावरकर एक बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे एक महान क्रांतिकारी होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट समाज सुधारक, एक प्रतिभाशाली लेखक और एक संवेदनशील कवि भी थे। सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने पत्थर के टुकड़े को अपनी कलम बनाकर जेल की दीवारों पर छह सौ से अधिक कविताएं लिखीं और उन्हें कंठस्थ कर लिया। उन्होंने पाँच मौलिक पुस्तकें भी लिखीं, जो उनके गहन चिंतन और अद्भुत लेखन क्षमता का प्रमाण हैं।यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय इतिहास के साथ सुनियोजित छेड़छाड़ की गई और इसी षडयंत्र के तहत वीर सावरकर के व्यक्तित्व को धूमिल करने का प्रयास किया गया। यह न केवल एक व्यक्ति की हत्या थी, बल्कि एक ऐसे विचार की हत्या का प्रयास था जो भारत की स्वतंत्रता और अखंडता के लिए अटूट रूप से समर्पित था।वीर सावरकर के जीवन के अंतिम दो दशक राजनीतिक एकाकीपन में बीते। उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था। फरवरी 1966 से उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया और अपने जीवन के अंतिम क्षण तक उपवास पर रहे। 26 फरवरी 1966 को इस महान क्रांतिकारी ने अपने पार्थिव शरीर को त्याग कर अनंत यात्रा पर प्रस्थान किया। इस प्रकार, एक परम वीर और महान स्वतंत्रता सेनानी का अंत हो गया।
वीर सावरकर एक कट्टर हिन्दू थे और अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे। यह सत्य है कि यदि वीर विनायक दामोदर सावरकर न होते, तो भारत का अंग्रेजी दासता से मुक्त होना और एक स्वतंत्र भारत का मुगल सल्तनत बनने से बचना शायद कभी संभव नहीं हो पाता। उनका जीवन और विचार आज भी हमें राष्ट्र के प्रति समर्पण और अटूट साहस की प्रेरणा देते हैं।
भारतीय जीवन बीमा निगम , मुजफरपुर , बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ