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मां के बराबर कोई नहीं

मां के बराबर कोई नहीं

ममता का पावन खजाना मां के बराबर कोई नहीं।
वात्सल्य लुटाती नेह भरा आंँचल बराबर कोई नहीं।

मां के चरणों में स्वर्ग है चारों तीर्थ का है पुण्य धाम।
आंंचल की छांव सुख देती होठों पर हो मां का नाम।

नैनों में स्नेह की धारा मां के त्याग बराबर कोई नहीं।
गोदी में पलकर बड़े हुए अनुराग बराबर कोई नहीं।

बाधाओं से भीड़ जाती है मां तूफान से टकराती है।
संस्कारों की ज्योत भव्य जीवन की राह दिखाती है।


माता तो है शक्ति स्वरूपा दरबार बराबर कोई नहीं।
भर देती है झोली सबकी दातार बराबर कोई नहीं।

जादू भरी है ममता की लोरी मीठी नींद सुला देती।
खुद भूखी सो जाए निवाला बच्चों को खिला देती।

गढ़ लेती कीर्तिमान माता संस्कार बराबर कोई नहीं।
शिवा सरीखे योद्धा जन्मे तलवार बराबर कोई नहीं।

रमाकांत सोनी सुदर्शन


नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान

रचना स्वरचित व मौलिक है
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