चैत्र शुक्ल पूर्णिमा श्री हनुमान जन्मोत्सव
पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी वानर राज केसरी तथा अंजना के पुत्र थे। हनुमान जी की माता अंजना वास्तव में स्वर्ग की अप्सरा थीं जिन्होंने शाप के कारण मानव योनि में जन्म लिया था। वहीं हनुमान जी के पिता वानर राज केसरी देवताओं के गुरू वृहस्पति के पुत्र थे। केसरी वानरों के सम्राट और कपि देश के राजा थे। केसरी के छ: पुत्र थे, जिनका नाम हनुमान, मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान था। केसरी के पुत्रों में हनुमान जी सबसे बड़े थे। माता अंजना को एक श्राप मिला था, जिसके वजह से वानर के रूप में अपने बड़े पुत्र हनुमान को जन्म दिया था।
हनुमान जी को भगवान् शिव जी का ११ वां अवतार माना जाता है। माता अंजना ने पुत्र प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी तब भगवान् शिव ने उन्हें दर्शन देकर पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। इस प्रकार भगवान् शिव ने पवन देव के रूप में अपनी शक्ति का अंश अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कराया था। तथा इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ था।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में हनुमान जयंती का त्यौहार दो बार मनाये जाने की परंपरा है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर स्वाति नक्षत्र में हुआ था। वहीं हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि पर हनुमान जन्मोत्सव मनाने के पीछे का रहस्य हनुमान जी के बाल्य अवस्था के एक कथा से जुड़ा हुआ है। जैसा कि हम जानते हैं कि हनुमान जी भगवान् शिव के ११ वें अवतार हैं और उन्हें अष्ट सिद्धियाँ और नौ निद्धियां प्राप्त हैं। इस कारण से हनुमान जी की शक्तियां बहुत अधिक मानी गई हैं। एक बार की बात है जब हनुमान जी छोटे बालक थे तब उन्हें बहुत जोरों की भूख लगी। उस समय हनुमान जी ने लाल सूर्य को फल समझ कर और अपनी शक्ति के बल पर सूर्य देव को निगल लिया था। जिस समय हनुमान जी सूर्य देव को निगल रहे थे उस समय वहाँ पर पहले से राहू मौजूद था और वह भी सूर्य देव को अपना ग्रास बनाना चाहता था। हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगलते हुए देखकर राहू ने यह बात देवराज इन्द्र को जाकर बताई। राहू की बात सुनकर इंद्रदेव क्रोधित हो गये और हनुमान जी को दंड देने के लिए उन पर बज्र से प्रहार कर दिया। बज्र के प्रहार से हनुमान जी को उनके दाढ़ी में चोट लगी और वे वेहोश हो गये। जब यह बात हनुमान जी के पिता पवन देव को मालूम हुआ कि उनके पुत्र पर इंद्र ने बज्र से प्रहार किया है, तो उन्होंने क्रोधित होकर पूरे ब्रह्माण्ड की प्राणवायु को रोक दिया। समूची सृष्टि की प्राणवायु रुक जाने से सभी लोगों में हाहाकार मच गया। तब ब्रह्मा जी ने पवन देव को समझाते हुए हनुमान जी को जीवन दान दिया। ऐसी मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा तिथि थी जिस दिन हनुमान जी को नया जीवन मिला था। इस कारण से हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
हनुमान नाम पड़ने के पीछे भी यही कहानी है। संस्कृत भाषा में हनु को दाढ़ी कहा जाता है। देवराज इन्द्र ने अपने बज्र का प्रहार बजरंगबली की दाढ़ी में किया था, जिस कारण चोट लगने से उनकी दाढ़ी तिरछी हो गई। इसी कारण से भगवान बजरंगबली का नाम हनुमान पड़ा। इसके बाद सभी देवताओं ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया था।
हनुमान जी के उत्पत्ति की कथा विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों और कथाओं में अलग अलग बताई गई है , लेकिन मुख्य रूप से वे भगवान शिव का रूद्र अवतार और वायुदेव के पुत्र माने जाते हैं। इस कलियुग में हनुमान जी ऐसे एक मात्र देवता हैं जो अभी तक सदेह जीवित हैं और जहाँ राम नाम की चर्चा होती है वहाँ वे वर्तमान रहते हैं।
तो आइये, आज श्री हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान जी की आराधना करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
🌹🌹जय श्री राम। जय हनुमान। 🌹🌹
जय प्रकाश कुंवर
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