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प्रकाश की ओर

प्रकाश की ओर

जीवन में वास्तविक अंधकार वह नहीं जो आँखों से दिखता है, बल्कि वह है जो किसी के छल, स्वार्थ या कपट के कारण हमारे विचारों, निर्णयों और आत्मविश्वास पर पड़ता है। यह अंधकार तब और भी घातक हो जाता है जब हमारे आसपास ऐसे लोग होते हैं जो जानबूझकर हमें सच्चाई से दूर रखते हैं—जो हमारे साथ मित्रता का मुखौटा ओढ़कर हमारे रास्ते में भ्रम का जाल बुनते हैं। अतः हमें अंधेरे से नहीं, बल्कि अंधेरे में रखने वालों से सावधान रहना चाहिए।

ऐसे ही एक और छुपे खतरे का नाम है—झूठी प्रशंसा और चापलूसी। यह मधुर प्रतीत होने वाली बात धीरे-धीरे हमारे भीतर अहंकार का बीज बो देती है। जब बार-बार कोई हमें अनावश्यक सराहना के जाल में फंसाता है, तो हम अपने आत्म-निरीक्षण को खो बैठते हैं और यहीं से पतन का मार्ग शुरू होता है।

संस्कृत साहित्य में भी इस प्रवृत्ति को लेकर अनेक चेतावनियाँ दी गई हैं। महाभारत और नीति शास्त्रों में चापलूसों से सावधान रहने की बात कही गई है:

"निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीं न जहाति पुरुषो नित्यम् उद्यत: सन्।
स्वार्थान्नरं प्रशंसन्ति च ये च निन्दन्ति,
तेषां न वाक्यविशये नृप निर्णयं क्यात्॥"

भावार्थ: नीतिशास्त्र में कहा गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति की निंदा हो या स्तुति, यदि वह सदा प्रयत्नशील है तो लक्ष्मी (संपन्नता) उसका साथ नहीं छोड़ती। लेकिन जो लोग केवल स्वार्थवश किसी की प्रशंसा या निंदा करते हैं, उनके शब्दों पर निर्णय नहीं करना चाहिए।

अतः आवश्यक है कि हम आत्म-चेतना बनाए रखें, स्वयं का मूल्यांकन स्वयं करें, और उन लोगों की संगति करें जो सत्य बोलने का साहस रखते हैं—even if it hurts. यही जीवन को प्रकाश की ओर ले जाने का मार्ग है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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