किस बात का गुमां है, किस भरम में हो मीत ---- ?

- विदुषी साहित्यकार गिरिजा बरणबाल की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना,११ अप्रैल। "किस बात का गुमां है, किस भरम में हो मीत/ उफनती हुई नदी में नाव सी है ज़िंदगी।"---- “आमने माना कि न कहोगे हमारी इल्तिजा पे लेकिन/ होठों पे लफ़्ज़ 'हाँ' आके थरथराए तो क्या करोगे?” आदि हृदय तक पहुँचने वाली पंक्तियों से नगर के कवियों और कवयित्रियों ने श्रोताओं को अंदर तक कुरेदा। शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में स्मृति-शेष विदुषी गिरिजा बरणवाल की जयंती पर कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से आरंभ हुए इस कवि सम्मेलन में , सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कड़ाके की गर्मी में पावस को आमंत्रण देते हुए कहा कि " चपल पावस के आते ही वसुधा का मन हर्षाया/ पतझड़ से सूखे गातों पर हरित रुधिर भर आया।"
शायरा शमा कौसर 'शमा' ने जब इन पंक्तियों को स्वर दिया कि, “ये हमने माना कि 'न' कहोगे हमारी हर इल्तिजा पे लेकिन/ तुम्हारे होठों पे लफ़्ज़ 'हाँ' आके थरथराए तो क्या करोगे?", तो श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से सराहना की। गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय का कहना था- “चंचल शोख़ तुम्हारी अलकें/ प्रलय मचाती प्यारी पलकें/ आमंत्रित करते हैं अधर ये जिनसे नेह की मदिरा छलके/ आँखों के सामने तुम हो, मन में उठाते झंझावात/ आई आज मिलन की रात"। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा अनिल कुमार शर्मा, डा शालिनी पाण्डेय, कुमार अनुपम, ईं अशोक कुमार, नीता सहाय, सदानन्द प्रसाद, डा सविता मिश्रा मागधी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी , सुनीता रंजन, दिव्या राज चौहान तथा शंकर शरण आर्य ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं का मन खींचा।
इसके पूर्व,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ समेत अनेक साहित्यकारों और प्रबुद्धजनों ने गिरिजा जी के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि, गिरिजा जी एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री और निबंधकार थीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा बनारस विश्वविद्यालय से हुई और उन्हें आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, डा नामवर सिंह, पं त्रिलोचन शास्त्री जैसे विद्वान आचार्यों से शिक्षा और साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला। उनकी रचनाओं में उनकी प्रतिभा और विद्वता की स्पष्ट झलक मिलती है। उनकी विनम्रता और उनका आंतरिक सौंदर्य, उनके विचारों, व्यवहार और रचनाओं में अभिव्यक्त हुआ है। उनके व्याख्यान भी अत्यंत प्रभावकारी होते थे। उनके चेहरे पर सदा एक स्निग्ध मुस्कान खेलती रहती थी, जो उन्हें विशिष्ट बनाती थी।
विशेष आग्रह पर डा सुलभ ने अपनी ग़ज़ल "सहरा में दो बूँद आब सी है ज़िंदगी/ खूबसूरत मगर ख़ाब सी है ज़िंदगी।" का पाठ किया। उनके इस शेर की तालियों से सराहना हुईं कि "किस बात का गुमां है, किस भरम में हो मीत/ उफनती हुई नदी में नाव से है ज़िंदगी"। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, भवन अभिरक्षक प्रवीर कुमार पंकज, ईं अवध बिहारी सिंह, राज आनन्द, अमितेश आनन्द, सच्चिदानन्द शर्मा, मालती देवी, दुःख दमन सिंह आदि प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।
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