आती-जाती लहरें
आती-जाती लहरें बहती, सागर की उथल-पुथल।
भावों का सागर उमड़े, बढ़ता जाता अथाह जल।
कभी इधर से कभी उधर से, लहरें उठती जाती।
सागर की लहरें सिंधु में, जाकर विलय हो जाती।
मन में उठती लहरों यूं, भावों का बहता है प्रवाह।
विचारों का सैलाब आए, अगणित मन की चाह।
आती जाती लहरें सिंधु, बढ़ते जाना सबको राही।
दुनिया मौसम सारा जमाना, बदले प्रिय हमराही।
कभी शिखर को छू जाना, गिरना यूं झरना सा।
सागर जल सागर में जा, मिलता यूं सपना सा।
अंतर्मन के अंतर्द्वंद्व को, प्राणी जरा पहचान लो।
भव सिंधु में हिलोरे उठती, लहरों को जान लो।
समझ सको सार छुपा, लहरों का यूं आना जाना।
पानी का बुलबुला जीवन, उठना और मिट जाना।
भव सागर में लहरें उठती, कल कल गाती जाती।
जीवन का संगीत मधुर, लहरें आकर हमें सुनाती।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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